Mahakta Aanchal story in Hindi - ❤️दिल से जब दिल मिले❤️ - महकता आंचल स्टोरी

महकता आंचल कहानी हिंदी में - ❤️दिल से जब दिल मिले❤️ - महकता आंचल स्टोरी 

अस्सलामु अल यकुम दोस्तों आज मैं मा हकता आँचल स्टोरी इन हिंदी महकता आँचल स्टोरी    हम जहाँ गीर का" दिल से जब दिल मिले "एक मुहब्बत पर यकीन ना रखने वाले की खूबसूरत दास्तां" पेश करने जा रही हूँ! उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
  
     खास गुलाबी लिफाफा मेज़ के बीच में देखे गए फोटो सुनहरी लेटर्स में लिखा था कि पर्सनल लाइफ़फ़ा लेबल लगी कि पर्सनल मेल का जवाब देना भी उनकी ज़िम्मेदारी थी।

"ओ हो तो वकील साहब की यूनिवर्सिटी है आज। मोहतरम पूरे तीस साल के हो गए हैं।" आज भी आन्टी नानू ने बेहद नाराज़गी के साथ अपने खास अंदाज़ में यूनिवर्सिटी की मुबारकबाद के साथ अरसल के साथ अभी तक कुररे होने पर जर्नल की पत्रिकाएँ जारी कीं। हर दो यूक्रेनी बाद में एंटी नानू के ख्यात खातियां सामने आईं और सोनिया को जवाब देना पड़ा। आज तक उसे जो कुछ महसूस हुआ, उसका नतीजा यह था कि आन्टी नानू मिस्टर अरसल की नानी होने के साथ-साथ उनके सबसे प्यारे सी-फ्रेंड ने भी क्या किया, लेकिन अफसोस कि दोनों में एक मिनट भी नहीं चली। उनके मुहब्बत के अंतिम अंतिम कार्ड पर बास्ट बॉस मैन की तस्वीर में करसोना को हंसते हुए देखा गया।

"अरे सोनी मीरा!" खनकती आवाज़ पर सोनिया ने दरवाजे की तरफ देखा। चुस्त गुड़िया गुड़िया सी हिल पर बैलेन्स करती है, हाथ की उँगलियों में कुँगाती नताशा बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी।

'अर्सल कहाँ है?" वह बेतकल्लुफी से अपने महीने के कोने पर टिक गई।

"मिस्टर अरसल एक केस के दोस्त इंदौर में गए हैं।" सोनिया ने कार्ड पिंक लाइफ़फ़े में डाला और अपना फ़ाइल वाला काम सेफ़ आउट किया।

'अरे अब क्या होगा? आज तो उनका बर्थ डे है। मैं उनकी सरप्राइज पार्टी अरेंज की हुई हूं। आज तो आ जायेंगे ना वह?'' गोल गोल मंथ सुरखे अवशेष से सजे होंत नखरे से चौबाती नताशा सोनिया से हमेशा ही चिपकी थी। 


जी लेबल तो यही गए थे कि आज वापसी होगी।'' वह लपरवाई से जवाब देकर अपने काम में लग गए।

"यह सब कैसे कर सकते हो तुम? हर समय की पढ़ाई, दिमाग की थकान, उफ तोबा मेरा तो बिल्कुल भी न हो इतना हस्क काम। चेहरे पर असर है।" वह बिल्कुल बिल्कुल फुर्सत से थी। सोनिया बिना जवाब दिए काम करती रहती हैं।

अच्छा यह बताया कि तुम खुद भी तो वकील हो फिर खुद पर कार्य क्यों नहीं करते। अरसल की असिस्टेंट क्यों बनीं। क्या कम हो?" नताशा ने उनसे पूछा।

"मैं जैसा काबिल नहीं हूं तो बहुत अच्छे वकील के असिस्टेंट बन गए और मिस्टर अरसल कितने अच्छे वकील हैं। यह तज़रीबा आपके लिए है, शायद मुझे भी नहीं।" सोनिया ने चाशनी में डब कर कड़वी सी बात का जिक्र किया। नताशा से उन लोगों की मुलाकात तलाकशुदा केसरी में हुई थी।

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नताशा की लव मेरिज कुछ महीने में ही नाकाम होकर तलाक की नौबत आ गई तो उसने अरसल से कान्टैक्ट किया। वह किसी भी तरह अब अपने शौहर के साथ रहना नहीं चाहती थी। मगर चूंकि महर दो लाख का था सो लड़के वाले तलाक देने को तय्यार न थे। मुआमला कोर्ट तक पहुंचा तो अरसल से बेहतर और कोई वकील नजर न आया और उस दिन से वह उनके सर पर  सवार थी। और अब तो सोनिया को महसूस होता था कि उसने मिस्टर अरसल को अपना वकील चुनने के साथ साथ अपन हमसफ़र भी चुन लिया था और मिस्टर अरसल से ज़्यादा बुदधू तो उसे और को लगता ही न था जो नताशा जैसी लड़की को पहचान न पाए थे। उनको उस कोमल सी नाजुक सी लड़की पर बहुत तरस आता था। यह भी कोई उम्र तलाक़ की थी। अ कौन उनको समझाता और तलाक़ के बाद पिछले इन छह सात महीने में तो नताश की नज़रे करम अरसल पर बढ़ती ही जा रही थी।" सोनिया अपनी सोचों के धार में बहती चली गई ।
"महक ! तुम्हारी शादी तो नहीं हुई ना अभी ?" नताशा की आवाज़ पर सोनिया अपने ख़्यालात से चौंक गई। उसने हैरत से उसको देखा ।

"नहीं, क्यों ?" वह दुबारा फ़ाइल
उठाने लगी। "मेरे पिछले शौहर के बारे में क्या
ख्याल हैं। बेचारा दिल का बुरा नहीं था। बस उसके ख्यालात बहुत पुराने थे। अस्ल में उसे बहुत पुराने ज़माने में पैदा होना चाहिए था। वैसे तुमसे खूब निभेगी उसकी।" सोनिया को उसने नज़रों ही नज़रों में जान्चा । जैसे कोई कुर्बानी के बकरे जांचता हो । सोनिया को आग सी लग गई। मगर खुद पर काबू ही रखा।
“इस आफ़र के लिए शुक्रिया । कभी जरूरत हुई तो तुमसे बात करूंगी।"।वह सरसरी अन्दाज़ में बोली। नताशा खिसया कर मेज़ से उतर गई ।

'अच्छा तो फिर मैं चलती हूं। " अरसल आएं तो उनको याद दिला देना कि आज उनको मेरे घर आना है और प्लीज पार्टी का न बताना, वह सरप्राइज है। ओ. के. बाई ।" वह हाथ हिलाती कमरे से निकल गई।

"तौबा क्या चीज़ है यह लड़की भी । कितना फालतू बोलती है। सब ज़रूरी काम दिमाग से निकल गये । नजाने मिस्टर अरसल को इसमें क्या नज़र आता है। खुद गरजी और बनावट इसके अंग अंग से छलकती है।" सोनिया ने उस खाली जगह को घूरा जहां कुछ देर पहले नताशा बैठी थी।

"या शायद मैं उसकी खूबसूरती सेजैलेस हो जाती हूं।" सोनिया सर झटक कर नये सिरे से अपना काम करने लगी ।

'महक ।" अरसल की आवाज़ पर सोनिया ने सर उठाया। नज़रें बन्द दरवाज़े पर थीं। कागजात समेट कर एक तरफ रखे। फिर उठ खड़ी हुई ।

"महक !" अबके आवाज़ जोरदार थी। सोनिया आराम से दरवाज़ा खोलकर कमरे में दाखिल हो गई ।

"सुनाई नहीं देता क्या ? कब से आवाजें दे रहा हूं। क्या कर रही थीं ?" अरसल उसकी तरफ देखे बगैर स्टार्ट हो गया- "कहां है मिसेज़ आफ़न्दी की केस. फ़ाइल। यह औरत तो मेरा दिमाग खराब करके रहेगी।" उसका जवाब सुने बगैर ही वह कड़क कर बोला।

"ए के खाने में रखी है ।" सोनिया ने केबनिट की तरफ इशारा किया।

"मुझे तुम्हारा यह सिस्टम बिल्कुल समझ नहीं आता । न ही मेरे पास इतना फालतू वक्त होता है ।" वह बेज़ारी से बोला तो सोनिया ने उठकर 'ए' के खाने में से फाइल निकाल कर उसकी मेज़ पर रखी और वापस जाने के लिए मुड़ गई।

"महक !" अरसल की आवाज़ ने उसके क़दम रोक दिये ।

"सोरी बैठो ना ।" वह अपनी तल्खी पर थोड़ा शर्मिन्दा नज़र आया। उसकी यही छोटी छोटी आदतें तो सोनिया को इस नौकरी पर रोके हुई थीं। वह अगर बद मिज़ाजी करता तो मुआफी मांगने में भी देर नहीं लगाता था । और सच तो यह था कि सोनिया की सेलरी इस नौकरी की सबसे
बड़ी कशिश थी। अब भी जाने किसका गुस्सा उस पर निकल रहा था। वह धीरे से सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई ।

"महक ! तुम्हें तो पता है कि अभी अभी तो आया हूँ। सख़्त थक गया हूं। और वह मन्हूस टेपरिकार्डर, तमाम रास्ते उस केस के नोटस रिकार्ड करता आया और अब चला कर सुना तो मालूम हुआ कि वह चला ही नहीं। जबकि बिल्कुल नया खरीदा था। कितने चोर हैं यह लोग । अब सारा काम दुबारा करना पड़ेगा। यह केस तो मेरे गले पड़ गया है । तलाक़ दूसरे लें और दर्दे सर मेरा । जाने लोग शादी करते ही क्यों हैं ।"

मुल्क के इतने बड़े वकील से यह बात सुन कर सोनिया को अंजीब लग रहा था। वह तो अपनी लाइन का बादशाह माना जाता था। जिस पार्टी का केस वह लेता था, वह तो आज तक हारी ही न थी। हां यह जरूर था कि इन सालों में अरसल शादी ब्याह, प्यार मुहब्बत और इनसे मुताल्लिक हर रिश्ते की अहमियत से नफरत करने लगा था । सोनिया ने एक अफ़सोस भरी नज़र उस अच्छे से इन्सान पर डाली।

"कोई है जो यह ठीक कर दे।' अरसल ने टेप मेज़ पर रख दिया। वह काफी चिड़ा हुआ था ।

"आपने लेते हुए चैक किया था ?" सोनिया जानती थी कि इस वक़्त उसका मूड आफ है । सो उसने धीरे से बात शुरू की।

"जब दिखाया तो तब तो चल रहा था।" अरसल जलकर बोला । "वैसे अगर वाकई ऐसा मसअला है।
तो मैं आज रुक जाती हूं। मुझे नोटस
लिखवा दीजिए। कल टाइप करके आपको 
मेज पर रख दूंगी। मुकदमे से पहले
सोनिया की आफर पर अरसल खिल उठा। "महक ! महक ! तुम्हारे बगैर मैं कैसे रह सकूंगा। मैं तो बिल्कुल अधूरा हू तुम्हारे बिना ।" उसने सोनिया को खुश होकर देखा । तमाम झुन्झलाहट और थकान उसके चेहरे से गायब थी। वह उसे मुहब्बत भरी नज़रों से ताक रहा था। अचानक •सोनिया का दिल जोर से धड़का। फिर उसने खुद पर काबू पा लिया। यह तो अरसल की आदत थी। वह था ही इतना जज्बाती ।

महक कागज कलम संभाल कर बैठ गई । अरसल दुबारा अपने कागजात में गुम हो चुका था। कितने ही नोटस थे जो महक को डिक्टेट करवाने थे। चन्द लम्हे पहले वह क्या बोल चुका था, उसे याद भी न रहा था।

न जाने कितना वक्त बीत गया था शाम के लम्बे साये कब के रात के अन्धेरे में समा गये थे मगर वह दोनों सबसे बेखबर अपने काम में जुटे हुए थे।

"यह लीजिए तमाम पेपर्स् ।' सोनिया ने फाइल इकटठी करके उनके सामने रखी और खुद बैठ गई । थकन से उसका बुरा हाल था। फ़ाइल चैक कर अरसल ने भी सुकून की सांस ली।

"शुक्र है यह काम भी निबटा । थैंक यू महक ! तुम हमेशा मुश्किल वक्त में मे साथ देती हो । आज अगर यह न होता कितने ही अहम प्वाइन्टस मेरे दिमाग़ से निकल जाते । यह सब इस फुजूल से केसिट प्लेयर की वजह से हुआ।” अरसल बोल
रहा था। सोनिया ने बेखयाली में वह कैसेट उठाकर देखा और फिर हौले से मुस्कुराते  हुए उसने ग़लत लगे हुए सेल सीधे दुबारा लगा दिये। बटन दबाते ही केसिट चल पड़ा।

"अरे! यह कैसे ठीक हो गया ?" चौककर उसे देखा ।

"सभी चोर नहीं होते। कुछ बेवकूफ भी होते हैं।" वह केसिट प्लेयर मेज पर रखकर उठ गई ।

"महक !" उसकी आवाज़ पर सोनिया के क़दम रुक गये । "जी!"

"यह तुम मुझ पर तन्ज़ कर रही थी ?" वह सन्जीदगी से पूछ रहा था। "नहीं सर !" वह मासूमियत से

बोली। "अगर तुम तन्ज़ करतीं तो...।" वह शायद उसे धमकाने वाला था ।

“सर! मुझे देर हो चुकी है। आपने शायद गौर नहीं किया मगर बाहर रात गहरी हो रही है। तमाम स्टाफ जा चुका है। वकील आप है मैं नहीं। मैं सिर्फ आपकी असिस्टैन्ट हूं और इसके साथ साथ एक लड़की भी । मेरी अम्मी अब परीशान हो चुकी होंगी। मैंने फोन तो कर दिया था मगर अब तो बहुत देर हो चुकी है।'' काफी देर हो जाने की वजह से सोनिया के लहजे में रूखापन आ गया था मगर अरसल काम ख़त्म होने की वजह से हलका फुलका मैसेज कर रहा था उसने बुरा ना माना और वैसे भी महक ठीक कह रही थी। "चलो मैं छोड़ दूं तुम्हें।" अरसल बाकी तमाम काम छोड़कर खड़ा हो गया ।

"प्लीज़ सर ! यह तो रोज ही होता है।" सोनिया बेग उठाते हुए बोली- "आप कितनी बार छोड़ेंगे। वैसे आज तो वाकई मसअला होगा।"

"यानी कि मेरी वजह से तुम रोज़ ही लेट हो जाती हो। यही कहना चाह रही होना ?" अब अरसल शर्मिन्दा होकर मूड आफ कर चुका था। इतनी रात गये सोनिया को उसकी आफर ही गनीमत लगी।

"चलें या अभी और बहस करके देर करने का इरादा है।" पलकों की ओट से उसे देखकर सोनिया ने मुस्कराहट लबों पर ही रोक ली।

"हूँ।" वह बुरा सा मुंह बनाकर उठ गया। इतना कामयाब वकील कभी कभी बिल्कुल बच्चों की सी हरकते करता था। तमाम रास्ते वह खामोश, नाराज़गी दिखाता रहा मगर सोनिया इतनी थकी हुई थी कि उसने परवा न की । वह उसे घर के दरवाजे पर ही ड्राप करके गाड़ी जन से ले उड़ा। वह थके थके कदमों से अपने छोटे से घर में दाखिल हो गई ।

वह ला‌ॅ के आखिरी साल में थी जब बाबा ने यह लाॅ फर्म अरसल के कहने पर उसके पैसे से खोली थी। अरसल उनसे तजरिबा हासिल करने आता था। बाबा को यह लड़का बेहद पसन्द था । जब बाबा की अचानक मौत ने उन सबको हिला कर रख दिया था तो यह अरसल ही था जिसने उनको सहारा दिया था। सोनिया ने यूं तो पूरा लाॅ पास नहीं किया था मगर अरसल ने फिर भी उसे नौकरी दी थी। वह तमाम उम्र आन्टी नानू के साथ रहा था। दौलत की रेल पेल तो थी मगर वह प्यार भरे रिश्ते जो हर इन्सान की जिन्दगी का हिस्सा होते हैं, वह उसकी ज़िन्दगी से गायब थे। अव्वल तो यह प्यार की दौलत उसने देखी ही नहीं थी ऊपर से रही सही कसर उसके प्रोफेशन ने पूरी कर दी थी। आए दिन की तलाक़ और झगड़ों ने उसका इन रिश्तों से एतबार ही उठा दिया था। यह प्यार मुहब्बत, इश्क, कुर्बानी, वफा यह सब उसे फिल्मी बातें लगती थीं। शादी ब्याह उसके ख्याल में एक मजबूरी थी। सोनिया के वालिद मक्बूल साहब की यह दिल से इज्जत करता था। उसने अगर ज़िन्दगी में कुछ सीखा था तो वह मकबूल साहब से सीखा था। सो उनकी फैमिली की मदद करना उसने अपना पहला फर्ज समझा और अब तो सोनिया की उसे इतनी आदत पड़ चुकी थी कि उसका एक दिन भी सोनिया के बगैर नहीं गुजर सकता था।

हमेशा की तरह आज भी सोनिया ने उसके काम को अपने आराम से ज़्यादा अहमियत दी थी मगर अब उसका जोड़ जोड़ दुख रहा था।

"आ गयीं तुम ? पता है क्या वक्त हुआ है ? रात हो चुकी है। मैं पूछती हूं यह किस किस्म की नौकरी है जो इतनी रात तक चलती है।" उसने लाऊन्ज में कदम में

धरा ही था कि अम्मी की जबान चल पड़ी। "आज काम कुछ ज़्यादा था अम्मी!". वह थकी थकी सी सोफे पर गिर गई।

"भाड़ में गया ऐसा काम । यह भी कोई वक्त है शरीफ लड़कियों के घर लौटने का। लोग कैसी कैसी बातें बनाते होंगे। अब आई कैसे हो ?" आमना बेगम को उसका देरे से आना एक आंख न भाता था। उनका बस न चलता था कि सोनिया का ब्याह करके उसकी जिम्मेदारी से फारिग हो जातीं । पर क्या करतीं, मजबूरियों की जन्जीरों ने उन्हें बुरी तरह जकड़ा हुआ था। बेटा भी पढ़ रहा था और छोटी बेटी तो अभी सेकिन्ड एयर में आई थी। उनकी ज़िम्मेदारी कौन निभाता । जानती थीं कि बेचारी सोनिया ही कुर्बानी का बकरा बनी हुई है फिर भी वह कहे बगैर बाज न आती थीं।

"अरसल साहब छोड़ गये थे अम्मी! देर जो इतनी हो गई थी।" लेटी रही। जानती थी अब इस बात पर भी उसे सौ सौ सुननी पड़ेंगी।

"बस इसी बात की कमी रह गई थी। जवान जट्टा लड़का छोड़ने आ रहा है। लोग तो तरह तरह की बातें बनाएंगे ना।" आमना बेगम का मुंह बन गया ।

"वह एक शरीफ़ इन्सान है अम्मी! हम पर तरस खाकर इतनी लिफ्ट देता है। वर्ना उसे लड़कियों की क्या कमी है।" सोनिया जलकर उठ बैठी। कभी कभी वह तंग आ जाती थी इन बातों से।

"मैं किस किस की जबान पकडू रहना तो इसी दुनिया में है। अकेले ज़िन्दगी कैसे गुज़र सकती है। "
"क्यों नहीं गुज़र सकती। आखिर किसी ने क्या किया है हमारे लिए। जब हम फाकों से मर रहे थे तो किसी ने पूछा भी नहीं। अब हम अपने पैरों पर खड़े हो गये हें तो किसी को क्या तकलीफ है। दुनिया को खटक रहा है हमारा सुकुन और आप भी अजीब है जो इन फुजूल बातो पर कान धरती हैं।" दिन भर की थकन ने आखिर उसे मुंह खोलने पर मजबूर कर दिया । चन्द लम्हे को आमना हक्का बक्का रह गयीं।

"हां हां अब क्यों न डांटोगी मां को । कमाई जो करने लगी हो। मां तो औलाद भले की ही सोचती है ।" आमना बेगम बोलते बोलते रो पड़ीं। सोनिया तड़प गई । उन्हें मनाने के लिए फ़ौरन उनके पैरों में बैठ गई।

"आपकी नाराज़गी मुझे कबूल नहीं अम्मी अगर आपको एतराज़ है तो मैं छोड़ दूंगी नौकरी!" उसने मां के घुटनों पर सर रख दिया।

"ना चन्दा ! तू तो मेरी बड़ी प्यारी बेटी है। मेरा ही दिमाग खराब हो जाता है। अरसल भी बड़ा प्यारा बच्चा है वही मुरव्वत वाला। मेरा मतलब उसे बुरा भला कहना न था । बस मां हूं ना । तेरा घर बस जाए बस यही फिक्र खाए जाती है । अगर अरसल ही तुझे मांग ले तो मेरी सारी फिक्र सत्म हो जाए ।" आखिरी जुमला उन्होंने हौले से कहा मगर सोनिया ने सुन लिया और नज़र अन्दाज़ कर गई ।
"अच्छा चल उठ ! हाथ मुंह धो ले। मैं खाना लाती हूं।" आमना बेगम उसके को थमा दिया । सर पर हाथ फेरती उठ गयीं। और वह उनका दिखाया हुआ ख्वाब दोहराने लगी।
दोस्तो उम्मीद है आपको Mahakta Aanchal story in Hindi दिल से जब दिल मिले कहानी पसन्द आ रही है।
अरसल की पर्सनल डाक का जवाब देते देते काफी वक्त बीत चुका था। उसने बाकी पड़े लेटर्स की तरफ देखा । अभी आन्टी नानू के कार्ड का जवाब भी देना था । वह उसने आखिर के लिए रखा था। पहले अरसल देख लेता तो कोई जवाब लिखती। जहनी थकन तमाम जिस्म में उत्तर आई थी। उसने कन्धे ढीले करके सर कुर्सी से टिका दिया और हौले हौले गर्दन का मसाज करने लगी।

"आज तो सुबह ही सुबह थक गई हो महक !" अरसल की आवाज पर उसने मुंह बनाया और सीधी हो गई। वह हाथों में कागजात का पुलन्दा लिए खड़ा था ।

'मैं घर पर भी काम ही कर रहा था।" उसने जैसे उसकी नज़रों का मतलब समझ लिया था। सोनिया कोई जवाब दिये बगैर अपने काम पर झुक गयी। अरसल को गुस्सा आ गया।

"तुम मुझे नज़र अन्दाज़ मत किया करो। मुझे बहुत चिड़ होती हैं। यह काम टाइप करके मेरी मेज पर रखो।" वह कागज़ात उसकी मेज़ पर ढेर करके जाने ही लगा था कि नज़र गुलाबी लिफाफे पर पड़ी।

"यह कब आया ?” आन्टी नानू का खत देखकर अरसल को झुरझुरी आ गई।

"कल ही पहुंचा था। मैं आपका ही इन्तिज़ार कर रही थी। आप देख लेते तो • जवाब लिख देती।" उसने कार्ड अरसल को थमा दिया।
"अच्छा अच्छा।" वह वापस पलटा।

"वैसे सर !”

"हूँ ।"

हैप्पी बर्थ डे ।" 

सोनिया ने मुस्कुराहट छुपाकर सन्जीदगी से उसे विश किया। जानती थी कि वह चिढ़ जाएगा । 

"ओह महक ! यू!" वह वाकई गुस्से में उसकी तरफ बढ़ा ।

"प्लीज़ अरसल साहब ! अपने जज्बात पर काबू पाएं। तीस साल की उम्र के बाद इन्सान को अपना खास ख्याल रखना शुरू कर देना चाहिए। देखिए ना कल पार्टी अटैन्ड की आज सुबह काम । इतनी फास्ट ज़िन्दगी गुज़ारना आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है ।" सोनिया उसे मुसलसल छेड़े जा रही थी। उसने खा जाने वाली नज़रों से सोनिया को घूरा तो उसका अपनी हंसी पर कन्ट्रोल ख़त्म हो गया। वह खिलखिला कर हंस पड़ी।

"मैं मैं तुमको जान से मार डालूंगा। क्या वह तुम थीं जिसने कल नताशा को मेरी सालगिरह का बताया था?" अरसल गुर्राया तो उसने हंसते हंसते इन्कार में सर हिलाया ।

“उफ मेरे खुदा! कितनी ख़ौफ़नाक पार्टी थी वह । गुबारे, टोपियों वाले दोस्त और तो और हैप्पी बर्थ डे का गाना । जाने कैसे मैं बच गया। मेरी कोई दिमागी रग क्यों न फटी ।” रात की पार्टी का मन्ज़र याद आते ही अरसल के रोन्गटे खड़े हो गये।

"सच ! क्या वाकई उसने यह सब किया ?" वह हंसते हंसते बेहाल हो रही थी। अरसल की निगाहें लम्हे भर को उसके गुलाबी गालों पर जम सी गयीं । बड़ा दिलकश लग रहा था उसका चेहरा हंसते हुए। उसने जल्दी से नज़रें चुरा लीं। वह अब तक हंसे जा रही थी।

"अब यह भी बता दो कि आन्टी नानू क्या फ़रमाती हैं ?" उसने बात बदल दी । "आपकी सालगिरह पर विश किया है।

दस हज़ार का चैक आपके गैर शादी शुदा होने की खुशी में भेजा है ।" उसने अपनी हंसी पर काबू पाकर बताया तो वह और चिड़ गया ।

"जाने हर बन्दा मुझ पर इतना मेहरबान क्यों है । वह अपने काम से काम क्यों नहीं रखतीं। खुद तो की नहीं शादी चली हैं मुझे नसीहतें करने। अपना शौक तो मुझे पालकर पूरा कर लिया ना । तुम ही बताओ शादी में क्या रखा है। यह तो चन्द दिन का कच्चा सा रिश्ता है।" अरसल वहीं बैठ गया ।

"यूं तो न कहें। न होने को तो वाकई एक कच्चा सा रिश्ता है लेकिन अगर जुड़ जाए तो इससे बढ़कर और कोई पक्का रिश्ता भी नहीं ।" वह उसे टोके बिना न रह सकी ।

"महक ! अस्ल में लोगों ने इस रिश्ते की बुनियाद ही ग़लत बनाई है। यह मुहब्बत, इश्क, प्यार सब चन्द दिन के जज़्बात हैं । जब यह बुखार उतरता है तो कुछ नहीं रह जाता सिवाए खोखले बन्धन के। जिसको आजकल लोग एक मिनट नहीं लगाते तोड़ने में।" उसकी सोच पर सोनिया हैरान रह गई ।

"तो फिर आपने यह प्रोफेशन अपनाया ही क्यों । कितने टूटे रिश्तों का सबब तो आप खुद बन गये हैं।" उसने कहा तो अरसल ने उस प्यारी सी मुखलिस लड़की को देखा जो जाने कितने ही सपने आंखों में लिए ज़िन्दगी गुज़ार रही थी। क्यों वह उसके सपने तोड़कर हकीकत की तस्वीर दिखाता ।

"छोड़ो ! तुम भी क्या ले बैठीं।" वह उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया ।

"नहीं प्लीज़ बताएं ना मुझे कि • आखिर आप तलाक़ के इतने खिलाफ हैं तो फिर यह सब क्या है ?" वह उसके पीछे लपकी ।

"बैठो !" वह अपनी कुर्सी पर गिर सा गया। सोनिया भी बैठ गई । "लॉ पढ़ने के दौरान मैंने बेतहाशा
ऐसी औरतों को देखा जो ज़ालिम शौहरों के साथ शादी के बन्धन में फंसी घुट घुट कर ज़िन्दगी गुज़ार रही थीं। आधी से ज्यादा तो इस ज़िन्दगी से नजात का रास्ता जानती ही नहीं थीं। ऐसी ही औरतों में खुला लेने की हिम्मत उजागर करने और उनको बेहतर ज़िन्दगी अपनाने के लिए नयी राह तलाश करने में मदद करने के लिए मैंने यह प्रोफेशन अपनाया था। यह सब मैंने उनके लिए किया जो बरसों से मर्दों के जुल्म सह रही थीं। मगर इतने सालों की परैक्टिस और तजरिबे ने मुझे यह सिखाया है कि कुछ औरतें आज भी वैसे ही घुट घुट है और आजकल की  नयी नस्ल ने तलाक़ को एक फैशन सा बना लिया है।" अरसल अपने दिल का गुबार निकाल कर खामोश हो चुका था। सोनिया भी खामोश थी।

कितने अलग अलग थे दोनों के ख़्यालात । वह जो एक छोटे से घर के सपने देखती थी। बच्चों और प्यार करने वाले शौहर की आरजू रखती थी। अपने घर को जन्नत बनाना चाहती थी और दूसरा अरसल  इन तमाम ज़ज्बों से इनकारी था ।

“आन्टी नानू को क्या लिखूं ।

सोनिया ने गहरी खामोशी को तोड़ा । "जो दिल चाहे लिख दो । तोहफे का शुक्रिया भी लिख देना ।" उसने बात खत्म करके  अपना कलम उठा लिया तो सोनिया भी अपने कमरे में चली आई ।

Mahakta Aanchal story in Hindi दिल से जब दिल मिले 

आप किचन में क्या कर रही हैं ?” " मां को सालन बनाते देखकर सोनिया क मूड आफ हो गया । आज सुबह से ही आमना बेगम की तबीअत कुछ नासाज थी। आज आशी की छुट्टी थी और सोनिया उसे खास ताकीद कर गई थी कि अम्मी को आराम करने दे । उस वक्त अम्मी को

किचन में देखकर उसे सख्त गुस्सा चढ़ा

था। "मैंने सुबह आशी से कहा था कि वह आपको काम न करने दे । आखिर वह बात सुनती क्यों नहीं ?" सोनिया गुस्से से बोली ।

"कोई बात नहीं। मैं कर जो रही पर थीं। हूं।"

"लाइये मैं बना लेती हूं। आप चल कर मेरे कमरे में आराम करें।" उसने मां के हाथ से चम्चा ले लिया।

"अरे रहने दो। पहले ही तुम पर इतनी ज़िम्मेदारियां हैं। तुम चलकर कपड़े बदलो। मैं खाना निकालती हूं। भाई और बहन को भी बुला लो। फिर तुम लोगों से कुछ ज़रूरी बात भी करना है।"
फिर खाने के दौरान अम्मी ने अहम खबर सुनाएं क्या असद हैरान होकर होना।
"सच ।" आशी खुशी से चीखी। 
"ओह नो!" सोनिया बड़बड़ाई ।

"तुम सबकी इन बातों से क्या समझू मैं ?" उन्होंने सोनिया की तरफ देखकर पूछा। वह दरअस्ल उसके ख्यालात जानना चाह रही थीं।

"खाला हमारे घर आ रही हैं यह कुछ इतनी अच्छी खबर तो नहीं।" सोनिया आहिस्ता से बोली ।

"आखिर वह आ क्यों रही हैं। हमारा घर कब उनकी शानो शौकत के काबिल है ।" असद अब भी हैरत में डूबा हुआ था । -
दोलत के घमन्ड में डूबी खाला का चेहरा उसकी निगाहों में घूम गया।

"अमीर होने का यह मतलब तो नहीं कि उनको अम्मी से प्यार कम हो गया जाहिर है बहन से मिलने आ रही होंगी और फिर जो भी हो मज़ा बड़ा आएगा। कितने तो वह तोहफे तहाइफ़ लेकर आती हमेशा ।'' आशी जज्बाती होकर बोली ।आमना बेगम की नज़रें अब भी सोनिया पर थी।

"पहले इतने साल कहां दबा रहा यह प्यार । ज़रूर कोई ग़रज़ होगी वर्ना खाला ऐसे ही कोई काम नहीं करतीं। नई  नई मिली हुई अमीरी काफ़ी दिमाग को चढी हुई है उनके ।" सोनिया चिड़ सी गई।

"बुरी बात सोनिया ! यूं किसी की बेइज्ज़ती नहीं करते । आसिया इतनी बुरी भी नहीं है। उसके बेटे अली ने बड़ी मेहनत से ये पैसा कमाया है । फिर हम कौनसे कमज़ोर हैं। अल्लाह का शुक्र है। देखो कोई कमी ना करना उनकी खातिरदारी में। मैं बैंक  से रुपये निकलवा लूंगी।

"अम्मी! मुझे भी एक दो नये सूट सिलवा दें । खाला क्या सोचेंगी।" आशी ठनकी।

"क्यों तुम्हारा रिश्ता होने लगा है।

वहां ?'' सोनिया ने आशी को घूरा । "क्या पता हो ही जाए।" वह मुंह चिड़ाती भाग गई ।

"सोनिया ! गुस्सा न करो। मुझे लगता है आसिया तुम्हारे रिश्ते के लिए आ रही है। ज़रा अपना ख़्याल रखना।" आमना बेगम दिल की बात ज़बान पर ले आयीं ।

"हमारा और उनका क्या जोड़। वैसे भी मैं अभी शादी में इन्ट्रेस्टेड नहीं हूं।"
वह खफा सी उठ गई तुम्हें शौक ना हो मेरा तो फर्ज है ना अच्छा शरीफ कमाऊ पूत है और क्या चाहिए वह अपनी बेटी के लिए ताने-बाने बोल रही थी।

"इतने पैसे क्यों निकलवाए ?" सोनिया  जल ही तो गई। मां एक एक पैसा मुश्किल से जमा कर रही थीं और फुजूल खर्ची ।

"अम्मी कह रही थीं कि सैरो तफरीह के साथ साथ उन लोगों को शापिन्ग भी करवाएंगे।" असद ने जल्दी से बताया।

"अम्मी यह ठीक नहीं कर रही हैं। हमें उनकी बराबरी नहीं करना चाहिए। असद अम्मी को समझाओ । आसिया खाला की तो आदत है हफ़्तों लोगों के घर ठाठ करती हैं। उन्हें खातिरें करवाने का शौक हैं।" सोनिया बहुत तल्ख हो रही थी। “कोशिश करूंगा । अब इन रुपयों को क्या करूं ?" असद बेचारा बैंक से पैसे निकलवा कर परीशान था। अम्मी ने चैक काट दिया था।

" अभी तो जाओ वर्ना अम्मी नाराज होंगी कि उनकी बात नहीं मानी।"  सोनिया ने असद को चलता किया और खुद -सर पकड़ कर बैठ गई। जाने अम्मी के दिमाग में यह शादी का कीड़ा कैसे कुलबुला गया था।
                    
महकता आंचल स्टोरी 

"महक ! महक ! वह नताशा की आखिरी पेशी के कागज़ात ज़रा मुझे दे जाना ।" बाहर से आकर सीधे आफिस में जाते हुए उसने जाकर सोनिया से कहा।

मगर उसे सर पकड़े देखकर ठिठक गया। "क्या हुआ महक ! तुम ठीक तो हो?" वह परीशान सा उस पर झुक आया । वह खामोश थी।

"महक! तबीअत तो ठीक है। प्लीज इस वक्त बीमार न होना। मुझे तुम्हारी सख़्त ज़रूरत है। पता है नताशा के शौहर ने जवाबी मुकदमा कर दिया है।" उसने कहा तो सोनिया खाली खाली आंखों से उसे देखे गई।

"महक क्या हुआ है तुम्हें ?"

"मिस्टर अरसल ! आपको हर वक्त अपनी पड़ी रहती है। कभी किसी दूसरे के बारे में भी सोचा है आपने। कभी यह भी सोचा है कि आपके अलावा भी इस दुनिया में लोग बस्ते हैं। मैं भी इन्सान हूं। मुझे भी प्राब्लम्ज़ हो सकती हैं। मैं तंग आ गई हुं आपकी इस 'मैं' से ।" आज जैसे तमाम जब्त के बन्धन टूट गये थे। उसने झुन्झलाहट में अपना सारा गुस्सा अरसल पर उतार दिया। वह हैरत की तस्वीर बना उसे एकटुक देखे जा रहा था। यह लाल भभूका चेहरा लिए कौन थी। उसे ऐसा लगा जैसे पहली बार वह उसे नज़र आई हो।

सोनिया शर्मिन्दा हो गई। जाने क्यों इतनी जज्बाती हो गई थी वह आज ।

"सोरी ! न जाने इस वक्त मुझे क्या हो गया था।" कहकर सर झुका गई।

"नहीं यह फुजूल बात नहीं है और हां मेरा नाम सिर्फ अरसल है मिस्टर अरसल नहीं। हम दोस्त हैं तो फिर इतना तो हक बनता है कि एक दूसरे पर ख़फ़ा हो सकते हैं।

"प्लीज़ अरसल ! मेरा नाम भी महक  नहीं सोनिया है। आप भी मुझे सोनिया कहा कीजिए।" "हैं सोनिया लेकिन सोनिया महक कैसे बन गई।" अरसल बड़बड़ाया ।

"मेरा पूरा नाम सोनिया महक है और आप यह बात जानते हैं।"

"न जाने क्यों तुम मुझे महक लगती हो सिर्फ महक । में किसी सोनिया को नहीं जानता ।" अरसल उस पर नज़र डालकर

मुस्कुराया। "मिस्टर अरसल ! आप नताशा के बारे में बता रहे थे।"

"सिर्फ अरसल।"

"यह तो मुश्किल होगा।" वह चुप सी हो गई।

"खेर छोड़ो नताशा को यह बताओ प्राब्लम क्या है ?" उसने कुछ इतने खुलूस से पूछा कि वह बोलती चली गई। आने वाले मेहमानों की परेशानी , अम्मी का रवैया सब कुछ उससे शेयर करती चली गई।

"अम्मी कुछ सुनने को तैयार नहीं। खुले हाथ से पैसा लुटाने को तय्यार बैठी हैं।" वह बेबसी से बोली ।

"तुम्हारी सेलरी में एक पैसे का इज़ाफा नहीं होगा।" सब कुछ सुनकर अरसल झटके से बोला तो वह चौक पड़ी।

चेहरा एकदम सुर्ख हो गया। "यह मैंने कब कहा

"फिर और क्या मतलब है अपनी परीशानी सुनाने का । चलता करो मेहमानो को । और हां अपने काम पर ध्यान दो।  पैसा एक नहीं बढ़ेगा।" उसने सपाट लहजे में कहा तो सोनिया का खून खोल उठा।

"मैं डबल सेलरी की हक़दार हुं। जितना काम करती हूँ । समझे आप ।उसके तपे हुए चेहरे को अरसल ने दिल से देखा । सोनिया के चेहरे से पहले के परीशानी के रंग गायब थे।

"महक! तुम यहां के उसूल जानती हो ।सेलरी में इजाफे के लिए एप्लीकेशन देनी पड़ती है। वह मेरी मेज़ पर रख दो सोचूंगा।" उसने कुछ इस अन्दाज़ से कहा कि सोनिया को हंसी आ गई।

"यह शख़्स नहीं सुधर सकता।" उसने दिल में कहा। वह यह तो समझ गई थी कि अरसल ने उसका ध्यान बटाने के लिए वह ड्रामा किया है। वह हौले से मुस्कुरा दी। अरसल ने एक नज़र उसके मुस्कुराते मुतमईन चेहरे पर डालाऔर मुस्कुराता हुआ पलटा "कागजात लेकर आओ महक !"

"यस सर !" वह खिलखिलाई। कितना सहारा था इस मुखलिस और हमदर्द इन्सान की दोस्ती का ।

"बज्जो जल्दी से तय्यार हो जाओ। अली भाई  पिकनिक का प्रोग्राम बना बैठे हैं।" आशी की आवाज़ पर वह चिड़ गई। "कौन कौन जा रहा है ?"

"हम तीनों और अली भाई ।" आशी

ने खबर दी। "हूँ।" वह हुन्कारा भरकर रह गई । "बज्जो ! क्या पहनू ?" 
'कुछ भी पहन लो।" वह बेदिली से बोली ।

 हाय बज्जो ! अली क्या सोचेंगे । कुछ तो अच्छी लगूं ना।" आशी की आवाज मे जाने क्या था जिसने सोनिया  को चोकने पर मजबूर कर दिया। वह कुछ. दिनो से अली की दिलचस्पी भी उसी तरफ देख रही थी। यह चीज़ उसे सोच में डालने के लिए काफी थी।"

एक दम डोर बेल बजी। वह बेदिली से उठी।

"अब कौन आ गया ? बज्जो ! प्लीज देर न करना ।" आशी जल्दी से बाथरूम मैं घुस गई ।

"अरसल आप ?" दरवाज़े पर खड़े अरसल को देखकर वह हैरान हुई । वह कम ही आता था। वैसे आज छुट्टी का दिन था। "अन्दर आ सकता हूं?" उसे चुप देख कर पूछा तो वह साइड में हो गई।
लाउंज में चलो! कुछ जरूरी बातें करनी थी। वह उसकी निगाहों में सवाल देख कर बोला,  वह पीछे पीछे आई । "क्या हो गया है भई ! क्या तुम्हारे घर आना कोई हैरत की बात है।" वह आराम से बैठ कर बुलावा चुप जो थी।

"फुर्सत थी। सोचा चलकर उन मेहमानों को भी देख लूं जो पिछले एक हफ़्ते से मुसलसल मेरी महक के हवासों  पर छाए हुए हैं।"

"सर प्लीज! नो मजाक ।में इस वक्त  वैसे ही उलझी हुई हूं। मेरी हिम्मत जवाब देती जा रही है। यह न हो कि सारी झुन्झलाहट आप पर उतर जाए।"

सोनिया तेजी से बोली । अच्छा अच्छा मगर यह सर कहना
तो बन्द करो । यह घर है आफिस नहीं ।" "आदत सी पड़ गई है क्या करूं।" सोनिया बोली ।

"अभी अभी अरसल कहा तो था।" "वह तो यूं ही मुंह से निकल गया था।"

"तो फिर सोचा ज़रा कम किया करो।" अरसल की बात पर सोनिया ने उसे घूरा

"ऐ मिस! मैं तुम्हारा बांस हूँ । जरा आराम से घूरा करो।" इस पर सोनिया कोई जवाब देने ही वाली थी कि आशी आ गई।

"ओह बज्जो ! आप अभी तक तय्यार नहीं हुयीं। देर हो रही है।" वह शुरू हो चुकी थी।

"आशी! अरसल साहब आए हैं।" उसने नजरों ही नजरों में आशी को डांटा।

 'आदाब !" उसने लापरवा सा  सलाम किया।

"मैं नहीं जा सकती। तुम लोग जाओ ।" सोनिया ने जान छुड़ाई। 'अगर मेरी वजह से. .......।अरसल उठने लगे।

 "नहीं, नहीं आप बैठे। मुझे वैसे भी नहीं जाना था।" सोनिया ने जल्दी से कहा।

" आशी !" उसी वक्त अली की आवाज़ आई तो वह तेज़ी से मुड़ गई।

"में जा रही हूं । अम्मी को बता देना ।" आशी झपाक से कमरे से निकल गई। सोनिया कुछ कह ही नहीं पाई। बस आशी के पीछे हिलते पर्दे को ही देखती रह गई।


"आप किसी काम से आए थे ना ?" अचानक सोनिया ने याद दिलाया।

"काम ! नहीं काम तो नहीं कह सकते। बस ऐसे ही तुम्हारी उस दिन की बातों के बारे में सोचता रहा था और फिर आन्टी नानू की बार बार की नसीहतों ने भी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है। तुम मेरी पर्सनल असिस्टेन्ट हो। तुमसे डिसकस कर लेने में क्या हर्ज है। बस इसी लिए चला आया।" वह कुछ झिझकता हुआ सा कह रहा था। सोनिया को अचंभा सा हुआ। मुल्क का इतना मशहूर, जबरदस्त वकील बात करने से घबराए ऐसा तो उसने कभी न देखा था।

"क्या बात करना चाह रहे थे ?"
उसने फ़ैसला देने को पूछा ।

“महक ! मैं शादी कर रहा हूं ।" अरसल ने जैसे बम छोड़ा। सोनिया को बुरी तरह झटका लगा। यह बात तो उसके वहमो गुमान में भी न थी ।

"शादी !" उसे यकीन नहीं आ रहा था- "और अचानक ?"

"हां। क्यों मैं नहीं कर सकता शादी ?" वह उसके रिएक्शन पर मज़े से मुस्कुराया । वह अभी तक फटी फटी नज़रों से उसे देख रही थी।

"नहीं, नहीं मेरा मतलब है आप तो शादी के सख्त खिलाफ थे । यह सब अचानक कैसे ?" उसने अपने आप को सभांला ।

"मैं आम किस्म की शादी के ख़िलाफ़ हूं। जिस किस्म की शादी मैं करना चाहता हूं वह ऐसी शादी नहीं होगी।" अरसल अजीबो गरीब किस्म के बयान दे रहा था।


"शादी की भी भला किस्में होत यह कैसी बातें कर रहे हैं आप। मसाइल में मैं उलझी हूं, असर आपके दिमाग  पर लगता है। वैसे शादी कर किससे रहे है सोनिया अब सभंल चुकी थी। इसलिए  हंस कर बोली ।

"बस अभी सोचा ही है। कोई  बात नहीं हुई है अभी ।" वह मज़े से बोल "हैं।" आज शायद हैरत के समन्दर में डूबने का दिन था - "तो क्या किसी ख़्याली तस्वीर से शादी का इरादा है। सोनिया को हंसी आ गई। वह शायद मज़ाक के मूड में था । "नहीं अब ऐसी भी बात नहीं। लड़की तो है मेरे ज़हन में । लेकिन सोचता हूं  ।वह मेरे ख्यालात से एग्री करेगी कि नहीं मैं चाहता हूं कि वह जान ले कि शादी कोई फिल्म या अफ़साना नहीं होती। वह रूमानी रिश्ते में बन्धने के बजाए आंखे खोल कर इस ज़िन्दगी में क़दम रखे। शादी हमारे बीच एक एग्रीमैन्ट होगा जो सदा के लिए होगा। झूटी कस्मों और वादों की कोई जगह नहीं होगी। दोस्तों जैसा अमल होगा । और अगर खुदा हमें औलाद जैसी नेअमत से नवाज़े तो उसे अपनी ख़्वाहिशात के टकराव की भेन्ट न चढ़ाएं।" अरसल बेखुदी में बोले चला गया। माज़ी (अतीत) की तल्ख यादें आंखों में परछाइयों की तरह लरज़ रही थीं। वह शायद अपने हालात के पेशे नज़र यह सब कुछ बोल रहा था। कितनी अजीब सी बात थी कि हम जिनके साथ इतना अरसा गुज़ार लेते हैं कभी कभी उनके बारे में कुछ भी नहीं जान पाते । 
अरसल ! आपने कभी अपने वालदैन के बारे में नहीं बताया। सोनिया ने धीरे से उससे पूछा।
         "मैं अपने वालिदैन की टैन्शन  का शिकार हूं। दोनों अलहदा हो गये तो मैं आन्टी नानू के पास आ गया। यह फैसला कोर्ट से मेरे हक़ में हुआ था । आन्टी की देखभाल में मेरी ज़िन्दगी बर्बाद होने से बच गई।" मुख़्तसर सा बताकर वह चुप हो गया।

"लेकिन जो कुछ आप चाहते है कोई लड़की भी नहीं चाहेगी।"

"मैं वक्ती लफ़्ज़ों की छांव के बजाए ज़िन्दगी भर का मज़बूत रिश्ता चाहता हूं ।जज्बाती रिश्ता नहीं चाहता जो पल मे टूट जाता है। यह सौदा उम्र भर का ह उसमें जज़्बात की कोई गुन्जाइश नहीं "अरसल की बातें सोनिया जैसी आईडियल के बारे में सोचने वाली लड़की की समझ से बाहर थीं।

"यू करें कि अखबार में इश्तहार दे दें ।कि आपको एक रोबोट की ज़रूरत है।" सोनिया हंसकर बोली।

"पहले तुमसे क्यों न पूछ लूं ।' अरसल एकदम बोला ।

"क्या ?" वह समझ न पाई। "तुम्हारा इस बारे में क्या ख्याल

है ?" वह इतमीनान से बोला । "किस बारे में, आपकी शादी के बारे में?" वह सवालिया अन्दाज में बोली ।

"मेरी भी और अपनी भी ।" उसने अनोखी बात कही।

"मगर मेरी शादी का क्या जिक्र आ गया ?" अब वह हैरान थी। यह किस ढंग पर बात चल निकली थी।
"क्यों अभी कुछ देर पहले तुम यह नहीं कह रही थी कि तुम्हारे लिए यह बात एक बड़ी प्राब्लम बनी हुई है। जहां तक मेरा ख्याल है तुम किसी में इन्ट्रेस्टेड भी नहीं हो तो फिर मेरी तजवीज पर गौर करने में क्या हर्ज है। वह बोला ।

 "आप कहना क्या चाह रहे हैं? मैं कुछ समझी नहीं ।" 

"मुझसे शादी करोगी ?"

"क्या ?" 
"इसमें हर्ज क्या है।

"अभी में इतनी मुश्किल में नहीं फसी मिस्टर अरसल ! और न ही मेरी कोई उम्र  निकली जा रही है जो मैं ऐसे समझौते करूं । आपको लड़की की नहीं, जज्बात से आरी एक रोबोट की ज़रूरत है और वह मैं हरगिज़ नहीं हूं।" वह उसकी बातों पर तप गई।

"इसमें इस कदर गुस्सा होने की क्या बात है। मैंने अगर तुम्हें कोई झूटे ख्वाब नहीं दिखाए तो क्या बुरा किया। अगर मैं तुमसे रूमानी डायलाग बोलता तो क्या राजी हो जातीं। शायद नहीं मगर फिर क्या होता । मेरे ख़्याल में इश्को मुहब्बत की बातों और कस्मों वादों से ज्यादा शादी में एक दूसरे पर एतमाद और एक दूसरे से अन्डर स्टेन्डिंग होना ज्यादा जरूरी है और यह सब कुछ हमारे बीच में है ।" अरसल ने उसे धीरज से समझाया ।

"वह सब तो ठीक है मगर मेरे ख्यालात आपसे ज़रा अलग हैं। शादी समझौता नहीं मुहब्बत की तकमील होनी चाहिए। एक दूसरे से मुहब्बत होगी तो बाकी बातें खुद ब खुद ठीक होती जाएंगी ।

"नो प्राब्लम महक ! अल्लाह करें  तुम्हारे तमाम ख्वाब पूरे हो जाए। " अरसल ने उसे दिल से दुआ दी । वह शर्मिन्दा सी हो गई। जज्बात में जाने क्या क्या बोल गई थी। मुंह शर्म से सुर्ख हो गया ।
           "चलता हूं कल आफिस में मुलाकात होगी ।" वह उठ खड़ा हुआ। सोनिया ने नज़र उठाकर देखा ।
              'आप खफा हैं क्या ?" उसने होले से पूछा।

"नहीं। इनकार तुम्हारा हक है। हो सकता है मैं फिर ट्राई करू ?" वह खुल कर मुस्कुराया । सोनिया को हंसी आ गई।

"आसिया खाला ने अली के लिए तुम्हारा रिश्ता मांगा है।" आशी ने उखड़े हुए लहजे में बताया तो उसे झटका लगा। वह अभी अभी आफिस से लौटी थी। 
"क्या बकवास है।" वह बेड पर बैठ कर सैन्डिल उतारने लगी। तभी अम्मी आ गयीं। चेहरा खुशी से दमक रहा था।

"यह नहीं हो सकता अम्मी!" वह गुस्से से खड़ी हो गई- "अली की पसन्द आशी है और मुझे कोई दिलचस्पी नहीं अली

में।" “आशी अभी बच्ची है। यह नेक काम तुमसे शुरू होगा। तुम बड़ी हो। और मैं आसिया को कभी खाली हाथ न लौटाऊंगी।" सोनिया की बेवकूफी पर उनका दिल चाहा अपना सर पीट ले । "कहीं हां तो नहीं कर दी आपने ?" वह घबरा कर बोल पड़ी।

'अभी तो नहीं मगर कर दूंगी । और "तुम कान खोलकर सुन लो यह रिश्ता जरूर होगा । बहुत कर ली तुमने अपनी मनमानी ।" आमना बेगम अपना फैसला सुनाकर कमरे से निकल गयीं। वह और ज्यादा परीशान हो गई।

मुसलसल टैन्शन ने सोनिया को बेहद सुस्त कर दिया था। आफिस के काम में भी दिल न लगता था। अरसल उसे देख रहा था। वह काम से उलझती, माथे को रगड़ती सीधी उसके दिल में उतरती जा रही थी।

"ओह ! यह मैंने दिल की बातें सुनना कबसे शुरू कर दी। लगता है महक का असर मुझ पर भी होता जा रहा है।"

वह अपनी बेवकूफी पर हंसकर अपने काम में लग गया । और सोनिया आशी के बारे में दुखी थी। वह बेचारी चुप होकर रह गई थी मगर अम्मी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह समझाते समझाते थक चुकी थी। अली आशी को चाहने के बावुजूद  खामोश तमाशाई बना हुआ था।

'दस बार अम्मी से कह चुका हूं मगर अम्मी की नज़र तुम्हारी कमाई पर है। इतना कमा रहा हूं और उनका पेट ही नहीं
भरता। आमना खाला भी उनकी हम ख्याल हैं। अब बताओ मैं क्या करूं?" बह बड़ी मासूमियत से बोला था सोनिया की हंसी आ गई।

"आखिर तुम यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देतीं। सब लालच खत्म हो जाएगा।" अली ने मशवरा दिया।

"हरगिज़ नहीं।" वह तप कर बोली। "क्यों आखिर ऐसी क्या बात है ?"

अली ने पूछा।

"नौकरी छोड़ दूंगी तो मेरे घर का क्या होगा। कैसे चलेगी यह गाड़ी ? खेर छोड़ो मैं खुद ही कोई रास्ता निकाल लूंगी।" उसने बात हो ख़त्म कर दी ।

"फिर अब क्या होगा ?" अली को अपनी पड़ी थी। सोचते सोचते अचानक उसकी आंखें चमक उठीं।

"तुम खुद किसी से शादी क्यों नहीं कर लेतीं।" उसने खुश होकर मश्वरा दिया।
 "वाह क्या मशवरा है किससे कर लूं शादी?"
 'भई मर्दों के साथ काम करती हो । कोई तो होगा ।" अली के कहने पर अरसल उसकी आंखों के सामने आ गए बेटा मगर उसने सर झटक दिया।

"ठक ! ठक!" अरसल ने उसकी मेज को बजाया तो वह चौंक गई ।
 "एनी प्राब्लम महक !" अरसल ने मुस्कुरा कर पूछा।

"नो सर ।" वह सर झुका कर बोली। "कोई मुश्किल  नहीं है या कोई नई प्राब्लम नहीं है।" वह उसकी मेज के कोने
पर टिक गया।

"नई प्राब्लम नहीं है।" वह मुस्कुरा कर बोली। उससे जब भी बात करती थी दिल का बोझ कुछ हलका महसूस होता था। मुश्किल गायब तो नहीं होती थी मगर उसकी शिद्दत में कमी लगती थी।

"हमने तकल्लुफात की दीवार गिराने का फैसला किया था फिर यह दोस्ती में ' सर' कहां से आ गया ।उसने प्यार से पूछा।

'सॉरी  अरसल !'

यह हुई ना बात। तुम कमजोर लग रही हो कुछ दिन की छुट्टी क्यों नहीं ले लेती । रेस्ट करोगी तो जहन हलका हो जाएगा फिर बेहतर  फैसला कर सकोगी।" वह उसे शुक्रिये के अन्दाज़ में देखने लगी। उसने अरसल का परपोजल रिजेक्ट करके उसे दुखी किया था फिर भी वह उससे हमदर्दी कर रहा था। कोई और होता तो बात भी नहीं करता। कहीं इससे मुझसे प्यार तो नहीं हो गया। सोचते ही उसे पसीना आ गया

“महक! तुम ठीक तो हो ।" उसकी आवाज़ पर सोनिया ने घबरा कर उसे देखा। कहीं वह उसके जज्बात समझ तो नहीं गया।

"मेरा ख्याल है तुम एक हफ्ते की छुट्टी ले लो । चलो काम समेटो ।" उसकी परीशानी देखकर वह बोला ।

"कितना ख्याल रखता है यह मेरा लेकिन मेरे लिए अपने दिल में कुछ नहीं रखता सिवाए दोस्ती या हमदर्दी के ।" वह सोचे चली गई ।

"महक ।" उसने बड़े प्यार से पुकारा तो वह जैसे होश में आ गई।

'नहीं अरसल ! इसकी जरूरत नहीं ।" उसने अपने आप पर काबू पाने कोशिश की।
और कोई बहाना नहीं ।जब मैं कह रहा हूं तो मत घबराओ  । उसने जबरदस्ती उसे घर भेज दिया घर आकर भी वह उन्हीं खयालों में घूम रही छुट्टी लेकर पछताई।

"यह राहें मुझे कहीं नहीं पहुंचाने वाली । मुहब्बत पर उसका यकीन नहीं। वह मुझसे दोस्ती मागंता है प्यार नहीं।" दिमाग़ ने कहा ।

"लेकिन मैं तो उसे चाहने लगी हूं।" दिल ने दुहाई दी।

सोनिया की खाली सीट देखकर अरसल को अजीब सा महसूस हुआ। अभी तो दो ही दिन गुज़रे थे मगर उसे लग रहा था जैसे उसे देखे ज़माने गुज़र गये हैं। अजीब सी बेचैनी का एहसास हो रहा था।"यह सब क्या है ? वह क्यों इतना याद आ रही है ?" उसने झटके से नताशा के केस वाली फाइल बन्द कर दी। और कुर्सी की बैक से सर टिका कर आंखें मून्द लीं। दिल में एक नया और अनोखा जज्बा अंगडाइया ले रहा था ।

"कहीं यह इश्क़ तो नहीं ?" उसने घबरा कर आंखें खोल दीं। फिर आप ही आप मुस्कुरा दिया ।

"हां यही बात है। मेरे सारे फलसफे धरे रह गये। वह जीत गई । मैं हार गया । मगर यह हार इतनी मजेदार क्यों है ? क्या यही इश्क है ?" वह अपने आप से बातें करता रहा और मुस्कुराता रहा ।

ख़ुदा ख़ुदा करके सोनिया की छुट्टीयां खत्म  हुयी। आफिस का दरवाजा खोलकर वह अपनी कुर्सी पर आकर गिर सी गई।

"महक कैसी हो?" अचानक अरसल की आवाज़ ने उसे चौंका दिया। वह अपने ख्यालों से बाहर आ गई। वह उस पर झुका हुआ था और उसके लिबास से फूटती भीनी भीनी खुशबू उसकी सांसों से होकर दिल में उतर रही थी। एकदम ही ताजगी और फरहत का एहसास हुआ था। चेहरा पल  में सूर्ख हो गया।
ठीक हूं मैं धीरे से मुस्कुराई और बात बदलने को बोली आज कौन सा केस को तैयार करना है ।
"आज !"उसने गहरी सांस लेकर उसे शौक नजरों से देखा आज मोहब्बत का केस डिस्कस करना है।

    कक...... क्या? आप और मोहब्बत नामुमकिन। एकदम मुंह से निकल गया
    
  क्यों क्या मैं मोहब्बत नहीं कर सकता ? उसने उसकी आंखों में कुछ इस अंदाज में झांका कि वह नजरें झुका गई ।       
       
   "मेरे कमरे में आओ आंटी नानू के खत का जवाब लिखवाना है ।"वह जाने के लिए पलटा।
     
"अरसल! "उसने पुकारा तो वह रूक गया।

 "आज आप खुद जवाब लिखवाएंगे। उसने हैरत से पूछा।

 "हां, अब हालात बदल चुके हैं। उठो ।" उसने अजीब से लहजे में कहकर हाथ बढ़ाया तो वह उसका हाथ थाम कर उठ गई। वह उसे अपने कमरे के बजाए रेस्टोरेन्ट में ले आया। वह उसके सामने बैठ गई। दिल इस अनहोने अन्दाज़ पर धड़के जा रहा था। पलकें झुकी जा रही थीं।

"महक !" उसने पुकारा। "मेरा नाम सोनिया है।" वह शोख हुई। अरसल ने कभी उसे सोनिया नहीं कहा था।

मगर तुम मेरे लिए महक  हो और हमेशा रहोगी ।" उसने कहा तो सोनिया  कुछ और ही समझ कर उदास सी हो गई।     अपने प्यार का इज़हार करना मुश्किल हो गया ।

"आप आन्टी नानू को जवाब लिखने  के बारे में कुछ कह रहे थे।" उसकी गहरी नजरें अपने आप पर महसूस करके जल्दी से उसने पूछा ।


"पहले तुम बताओ कि तुम्हारा मसला कितना हल हुआ ?" उसने पूछा।

"वहीं का वहीं है।"

"तो फिर क्या सोचा है तुमने ?" "वह आपने उस दिन हमारे घर...

मेरा मतलब है...।" वह झिझक रही थी। "किस दिन की बात कर रही हो ?"

वह अनजान सा बन गया कि उस दिन उसने सही ढंग से परपोज नहीं किया था। 
"उस दिन.... शादी..........जब आप.... शादी का प्रपोजल ।" आवाज़ उसके हल्क में फंस गई। 
        "उस दिन को भूल जाओ। उस दिन जाने क्या क्या बकवास की थी मैंने। जो कुछ मैं उस दिन बोल गया वह सब वक्ती जज्बात थे। मैं खुद अपने आप को धोका दे रहा था मगर अब मेरे ख्यालात बदल चुके हैं। वह सब भूल जाओ।" वह बोल रहा या और वह उसके जज्बे से बेखबर यह सोच रही थी कि उसने वक्त गवां दिया। भला रिजेक्ट किये जाने के बाद कौन वापस आत्ता है। और फिर अरसल के लिए लड़कियों की क्या कमी थी। एक तो नताशा ही थी जो उस पर दांत जमाए बैठी थी। वह इशारा भी कर देता तो वह उसकी झोली में आ

गिरती। उस दिन की नताशा की बातें और अरसल में उसकी दिलचस्पी याद आई तो वह जैसे कुछ छिन जाने के खौफ से चीख पडी- "नहीं।"
"क्या हुआ ? " अरसल जो खामोशी से उसका चेहरा पढ़ रहा था अचानक उसके बौखलाने पर चौंक कर पूछ बैठा । 

"मैं चलती हूं । गलती मेरी है।" वह जल्दी से खुद को संभाल कर बोली थी। 

   "बैठो।" वह उसे देखकर हाथ उठा कर बोला- “तुमसे कोई गलती नहीं हुई। गलती मेरी थी। मैंने तुम्हें हर्ट किया था। तब मैं मुहब्बत के जज्बे से अनजान था मगर अब!" वह सांस लेने को रुका।

"मगर अब !" सोनिया के मुंह से निकला।


"मगर अब मौसम बदला चुका है। मुहब्बत के हथियार सब कुछ बेमानी है। इसके साथ कोई मजबूत रिश्ता नहीं हो सकता। क्या अब भी समझ में नहीं आता? उसकी उलझन महसूस करके अरसल मुस्कुराया। 

"क्या?" उसे कुछ न कुछ मूलभूत बातें पसंद थीं।

"मुहब्बत। मेरी मुहब्बत। तुम्हें मेरी मुहब्बत नहीं चाहिए महोब्बत! क्या अपनी मुहब्बत मुझे दोगी?" उनके मुंह से शिष्य जज्बे बोल रहे थे। सोनिया खिली निकली। सारी ग़लत फहमी जाती रही। बिल्कुल उसका रोम रोम एतामाद से भर गया। होन्टों पर एक शरीर सी शर्मीली। सी मुस्कुराहट जाग उठी।

"नहीं" वह तेजी से बोली- "यह काम तो मैं बहुत पहले कर चुकी हूं। इतना बड़ा वकील इतना बुद्धू।" वह हंस पड़ा।

"क्या?" वह आखें दिखाती है- "मार डालूंगा।" उसने भी हंस दिया। और दोनों की हंसी ने मोहिनी को एकदम खुश गवार बना दिया।

थोड़ी देर बाद दोनों सिद्धांत में बैठे थे। सोनिया के हाथ में कलम थी और अरसल आंती नानू को ख़त लिखवा रही थी- "नानू मुबारक हो लड़की मान है। मैं सेहरा बांधने जा रहा हूं और दुल्हन मेरे सामने महक रही है।"

"मैं नहीं लिखती।" सोनिया ने कलम दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाया तो अरसल उसकी इस शर्मीली अदा पर जैसे कुर्बान हो गया।

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