बलिदान

बलिदान
हिमालय का एक अनूठा पेड़ अपने फलीय विशेषता के साथ एक निर्जन पहाड़ी नदी के तीर पर उनकी आकृति और सुगंध भी मन को मोह लेने वाली थी ।उस पेड़ पर वानरों का एक झुंड रहता था, जो बड़ी ही स्वच्छंदता के साथ उन फलों का उपभोग करता था । उन वानरों का एक राजा भी था जो अन्य बन्दरों की तुलना में कहीं ज्यादा बलवान, गुणवान और शीलवान था, इसलिए वह महाकपि के नाम से जाना जाता था । अपनी दूरदृष्टि से उसने समस्त वानरों को सचेत कर रखा था कि उस वृक्ष का कोई भी फल उन टहनियों पर न छोड़ा जाए जिनके नीचे नदी बहती हो । उसके अनुगामी वानरों ने भी उसकी बातों को पूरा महत्त्व दिया क्योंकि अगर कोई फल नदी में गिरकर और बहकर मनुष्य को प्राप्त हो जाता तो उसका परिणाम वानरों के लिए अत्यंत भयंकर होता । एक दिन दुर्भाग्यवश उस पेड़ का एक फल पककर टहनी से टूट, बहती उस दिनों उस देश का राजा अपनी रानियों व दास-दासियों के साथ उसी नदी के तीर पर विहार कर रहा था । वह प्रवाहित फल आकर वहीं रुक गया । उस फल की सुगंध से राजा आनंदित हो उठा । शीघ्र ही उसने अपने सेवकों को उस सुगंध के स्रोत के पीछे दौड़ा दिया ।

राजा के आदमी तत्काल उस फल को नदी के तीर पर प्राप्त कर राजा के सम्मुख ले आए । फल का परीक्षण कराया गया तो पता चला कि वह एक विषहीन फल था । राजा ने जब उस फल का रसास्वादन किया तो उसके हृदय में वैसे फलों तथा उसके वृक्ष को प्राप्त करने की तीव्र लालसा जगी । क्षण भर में सिपाहियों ने वैसे फलों के पेड़ को भी ढूंढ लिया । किन्तु वानरों की उपस्थिति उन्हें वहां रास नहीं आई, तत्काल दिया ।महाकपि ने तब अपने साथियों को बचाने के लिए कूदते हुए उस पेड़ के निकट की एक पहाड़ी पर स्थित एक बेंत की लकड़ी को अपने पैरों से फंसाकर फिर से उसी पेड़ की टहनी को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर लेट अपने साथियों के लिए एक पुल का निर्माण कर लिया। फिर उसने चिल्लाकर अपने साथियों को अपने ऊपर चढ़कर बेतों वाली पहाड़ी पर कूदकर भाग जाने की आज्ञा दी । इस प्रकार महाकपि के बुद्धि-कौशल से सारे वानर दूसरी तरफ की पहाड़ी पर कूदकर भाग दीदकर गए. राजा ने महाकपि त्याग को बड़े गौर से देखा और सराहा। उसने अपने आदमियों को महाकपि को जिंदा पकड़ लाने की आज्ञा दी । उस समय महाकपि की हालत अत्यंत गंभीर थी । साथी वानरों द्वारा कुचल जाने के कारण उसका सारा शरीर विदीर्ण हो उठा था । राजा ने उसके उपचार की सारी व्यवस्था भी करवाई, मगर महाकपि की आंखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं।

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