गड़ा धन पत्थर समान

गड़ा धन पत्थर समान
एक महाजन बेहद कंजूस था। वह काट-काटकर धन बचाने के सिवाय और कुछ जानता नहीं था। धीरे-धीरे उसके पास खूब धन जमा हो गया। उसके घर में धन ही धन दिखाई देने लगा। अब उसने सोचा- यह तो बुरा हुआ, मैंने कंजूसी कर पेट काट-काटकर धन जमा किया है और घर में धन ही धन दिखाई देता है।यदि इस पर चोरों की नजर पड़ गई तो ? अब इसकी रक्षा कैसे की जाए?
अन्त में महाजन को एक उपाय सूझा। उसने अपने सारे संचित धन से एक बहुत मूल्यवान और जगमग करता हीरा खरीद लिया और मन में कहा- चलो छुट्टी हुई। यह हीरा कहीं छिपा कर धरती में गाड़कर रख दूँगा। फिर चोर क्या चुरायेंगे, अपना सिर। केवल उस चीज के चोरी होने के डर रहता है जो लोगों को दिखाई। देती।

बस, महाजन ने उसी दिन वह हीरा चुपचाप अपने घर के एक कोने में गाड़ दिया, परन्तु अब उसका मन किसी काम में न लगता। दिन-रात हीरे में लगा रहता।। इसलिए वह प्रतिदिन मौका पाते ही घर के उस कोने में पहुँचता और धरती खोदकर देखता कि वहाँ हीरा है या नहीं-किसी ने उसे उड़ाया तो नहीं।

महाजन का एक नौकर पूरा काइयाँ था। उसने सोचा, मालिक प्रतिदिन चुपके-चुपके घर के उस कोने में क्यों जाते हैं, और वहाँ घण्टों क्या देखते हैं? इस कंजूस ने मक्खीचूस बनकर जो धन जमा किया है। पता नहीं वह कहाँ गाढ़ दिया है। शायद उसी कोने में छिपा दिया है, देखना चाहिए कि बात क्या है। बस, एक दिन मौका पाते ही नौकर उस कोने में जा पहुँचा। धरती खोदते खोदते ज्योंही उसके हाथ में हीरा आया त्योंही वह मारे खुशी के उछल पड़ा और फिर वहाँ से ऐसा गायब हुआ जैसे गदहे के सिर से सींग।

महाजन दूसरे दिन अपने नियम के अनुसार वहाँ पहुँचा, तो देखता क्या है कि धरती खुदी पड़ी है और हीरा गायब है। महाराज के पैरों तले से धरती खिसक गयी। उसने घबराकर सारी मिट्टी छान डाली, परन्तु उसमें हीरा होता तब तो मिलता। अब तो बेचारे महाजन का बुरा हाल हो गया। वह लगा अपना माथा पीटने और चीखने चिल्लाने, हाय! मैं लुट गया। मेरा प्यारा हीरा कहाँ चला गया। महाजन की यह चीख-पुकार सुनी तो एक पड़ोसी उसके पास दौड़ा आया और बोला- क्या बात है? इस तरह क्यों रो रहे हैं आप?

महाजन ने माथा पीटते-पीटते उत्तर दिया- मैं लुट गया भईया, मैंने एक वेशकीमती हीरा यहीं इसी कोने में छिपा रखा था। मालूम नहीं, कौन पापी उसे उड़ा ले गया।

पड़ोसी ने पत्थर का एक टुकड़ा उठाया और महाराज की ओर बढ़ाते-बढ़ाते कहा-तो इस तरह चीखने-चिल्लाने की क्या आवश्यकता है। लीजिए! हीरे के स्थान पर पत्थर का यह टुकड़ा रख लीजिए।

      महाराज छाती पीटते-पीटते बोला- क्यों मेरा मजाक उड़ाते हो भईया? मैंने जीवन भर अपना और दूसरों का पेट काट-काटकर धन जमा किया था और इसके बदले वह हीरा खरीदा था। जरा सोचो, कहाँ हीरा कहाँ पत्थर ।

पड़ोसी ने कहा- मैं मजाक नहीं उड़ाता, सच कहता हूँ। आखिर आप हीरा बस देखते थे उससे कुछ काम तो लेते नहीं थे। अब उसके बदले यह पत्थर देखिए, और समझिए कि हमारे पास यह हीरा ही है। भला जो धन धरती में गड़ा रहता है जो किसी के काम नहीं आता वह पत्थर से किस बात में बढ़कर है? धन तो खुद खाने-पीने के लिए होता है। यदि वह धन कामों में नहीं आता तो इसी तरह यह नष्ट हो जाता है। 







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