मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह।Hindi story
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मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह।Hindi story
हैलो मेरे प्यारे दोस्तो, आज हम मुंशी प्रेमचन्द जी की कहानी ईदगाह हिंदी मे । यह मुंशी प्रेमचन्द जी की कहानी सारा के जहां मे, महत्वपूर्ण बातो की सही और सटीक जानकारी देने की कोशिश है।
हमारा हमारा एकमात्र लक्ष्य हमारे सभी दोस्तो को एक ही लेख में सारी जानकारी देना है। ताकि आप लोगो का समय बर्बाद न हो। तो चलिए आगे पढ़ते है
- इस लेख मे आप पढ़ेगे
- मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह
- परिचय
- कहानी से मिली शिक्षा
- आज हमने क्या पढ़ा
- मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह
परिचय
ईदगाह : मुंशी प्रेमचंद - हिंदी कहानी । सारा का जहां
महान उपन्यासकार सम्राट और हिन्दी जगत के जाने माने लेखक मुंशी प्रेमचंद की वैसे तो कई प्रचलित रचनाएं हैं पर ईदगाह कहानी की एक अलग ही बात है। ईदगाह कहानी हामिद नाम के एक चार साल के अनाथ बच्चे की कहानी है। जो कि अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। इस कहानी का हीरो हामिद ने हाल ही में अपने माता पिता को खो दिया है। यह एक बाल मनोविज्ञान से संबंधित हिंदी कहानी है और एक दादी और पोते के बीच के प्यार को दर्शाती है। तो चलिए पढ़ते है ईदगाह कहानी
ईदगाह : हिंदी कहानी सांराश
पाठ का नाम = ईदगाह
लेखक = मुंशी प्रेमचंद
पाठ की विधा = कहानी
हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला, भोला – भाला लडका है। उसके माँ – बाप चल बसे हैं, वह अपनी बूढी दादी अमीना के साथ रहता है। उससे कहा गया है कि उसके माँ – बाप उसके लिए बहुत अच्छी चीजें लायेंगे। हामिद एकदम समझदार लडका है। उसके पैरों में जूते तक नहीं है। आज ईद का दिन है। सारी प्रकृति सुखदायी और मनोहर है। हामिद के दोस्त महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी सभी ईद के लिए तैयार हुए है। सब बच्चे अपने पिता के साथ ईदगाह जानेवाले हैं। आमीना डर रही है कि अकेले हामिद को कैसे भेजे? हामिद के धीरज बँधाने पर वह हामिद को भेजने राजी होती है। जाते वक्त हामिद को तीन पैसे देती है। सब तीन कोस की दूरी पर स्थित ईदगाह पैदल जाते हैं। वहाँ नमाज़ के पूरी होते ही सब बच्चे अपने मनपसंद खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर खुश होते हैं। हामिद भी खिलौनों को ललचायी आँखों से देखता है, पर चुप रहता है। आगे लोहे की दुकान में अनेक चीजों के साथ चिमटे भी रखे हुए हैं, चिमटे को देखकर हामिद को ख्याल आता है कि बूढी दादी अमीना के पास चिमटा नहीं है। इसलिए तवे से रोटियाँ उतारते उसके हाथ जल जाते हैं। चिमटा ले जाकर दादी को देगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी और उसकी उंगलियाँ भी नहीं जलेंगी। ऐसा सोचकर दुकानदार को तीन पैसे देकर वह चिमटा खरीदता है। सब दोस्त उसका मज़ाक उडाते हैं। हामिद इसकी परवाह नहीं करता। घर लौटकर दादी को चिमटा देते हैं तो पहले वह नाराज़ होती है। मगर हामिद कहता है की तुम्हारी उंगलियाँ तवे से जल जाती थीं। इसलिए मैं इसे लिवा लाया कहने पर उसका क्रोध तुरंत स्नेह में बदल जाता है। हामिद के दिल के त्याग, सद्भाव और विवेक गुण से उसका मन गद्गद् हो जाता है। हामिद को अनेक दुआएँ देती है और खुशी के आँसू बहाने लगती है।
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