बिल्ली का राज
बिल्ली का राज
एक जंगल में बहुत से जानवर रहते थे। उन सब में आपस में खूब मेल था। पर एक भूरी बिल्ली की किसी से नहीं पटती थी। दूसरे जानवरों की तरह भूरी, सीधी और भोली-भाली नहीं थी। वह बहुत ही चालाक थी। भूरी कभी भी किसी की मदद नहीं करती थी, न ही किसी की बात मानती थी। लेकिन चाहती यह थी कि सभी जानवर उसकी मदद करें और उसका हुक्म मानें। भूरी जंगल में अकड़ से रहती थी क्योंकि जंगल के राजा शेर खूंखार सिंह से भूरी की अच्छी दोस्ती थी। दरअसल, एक बार खूंखार सिंह की बहुत कोशिश के बाद भी हड्डी नहीं निकली और उसने खूंखार सिंह के गले से हड्डी निकाल दी। खूंखार सिंह को आराम मिल गया। खूंखार सिंह ने खुशी होकर कहा, “तुम तो बहुत अच्छी हो भूरी। तुम रोज मेरे पास आया करो। " तभी से खूंखार सिंह से उसे बहुत मनाने लगा।
उसी दिन से भूरी रोज खूंखार सिंह के पास जाने लगी। भूरी जंगल के किस्से सुनाती। कभी-कभार खूंखार सिंह के लिए कुछ उपहार भी ले जाती। अब भूरी के बिना खूंखार सिंह का मन न लगता। वह उदास हो जाता।
भूरी से दोस्ती से पहले खूंखार सिंह रोज जंगल का चक्कर लगाता था । सब जानवरों से मिलता था। उनके हाल-चाल पूछता था। खूंखार सिंह सबकी मदद भी करता था।
पर जब से भूरी उसी मित्र बन गई थी तब से वह खुद जंगल नहीं जाता था। भूरी से ही जंगल के जानवरों के बारे में पूछ लेता था।
भूरी चालाक तो थी ही। वह दोस्ती का नाजायज फायदा उठाने लगी। जंगल का जो भी जानवर भूरी की बात नहीं मानता था, उसकी चुगली वह खूंखार सिंह से कर देती थी।
अगर तेजू हिरण भूरी को पीठ पर बिठाकर जंगल की सैर नहीं कराता, उछलू बन्दर पेड़ से आम और जामुन तोड़कर भूरी को नही दूता, कालू हाथी भूरी को सूंड में उठाकर झूला नहीं झुलाता तो भूरी नाराज हो जाती और उन जानवरों की झूठी सच्ची शिकायत खूंखार सिंह से कर देती।
जंगल के सभी जानवर भूरी से बहुत परेशान थे। उन लोगों ने कई बार खूंखार सिंह से अकेले में मिलने की कोशिश की, पर हरदम भूरी बीच में आ जाती। आखिर में खरगोश पिंगू ने एक तरकीब निकाली।
तरकीब के अनुसार कालू हाथी ने हाथ आड़े कर राजा से कहा ,"महाराज,कल नदी किनारे हम लोग नाच गाने का कार्यक्रम कर रहे है , आप जरूर आइएगा।"
अगले दिन सभी जानवर नदी किनारे जमा हो गए। वहाँ पर उन्होंने बैठने के लिए दो चौकड़ियाँ बनाईं। एक चौकड़ी ऊँची थी और एक नीची। सभी ने खूंखार सिंह को उठकर स्वागत किया। खूंखार सिंह ने चारों तरफ देखा, “बड़ी अच्छी सजावट की है।” और ऊँची वाली चौकी की ओर चल दिए।
चौकी पर वह बैठने को ही था कि पिंगू बोला, “ठहरिए महाराज, यह ऊँची चौकी आपके लिए नहीं है। फिर भूरी से बोला, “आइए महारानी भूरी। आप यहाँ पधारिए। यह ऊँची, चौकी आपके लिए है।" पिंगू की बात सुनकर खूंखार सिंह का चेहरा गुस्से सलाल हो गया। वह जोरों से दहाड़ा। सभी जानवर थर-थर कांपने लगे।
छोटा पिंगू हिम्मत कर बोला, “महाराज, गुस्सा मत हों। मेरी वात तो सुनें।"
“मुझे कुछ भी नहीं सुनना। तुम सबने मेरा अपमान किया है। मैं एक को भी जिन्दा नहीं छोडूंगा।” खूंखार सिंह ने गुस्से से कहा।
“महाराज, हम लोगों ने तो आपके लिए यह ऊँची चौकी बनाई थी, पर भूरी ने कहा कि वही इस जंगल की रानी है। इस कारण ऊँची चौकी पर उसको ही बिठाया जाए। क्योंकि भूरी का ही राज जंगल में चलता है।"
भूरी जानवरों की चाल समझ गई। वह भागने को ही थी कि गोलू सियार ने उसे दबोच लिया। खूंखार सिंह ने भूरी की ओर देखा। वह गिड़गिड़ाने लगी, “महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। मुझे क्षमा कर दीजिए। अब मैं सबसे मिल-जुलकर रहूँगी।"
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