मित्र वही जो विपत्ति में काम आये
मित्र वही जो विपत्ति में काम आये
दो मित्र एक साथ जंगल की राह से कहीं जा रहे थे। अचानक उनको एक रीछ जाता हुआ दिखाई दिया। वह अब तो बहुत घबराए और आपस में सलाह करने लगे। बतओ क्या किया जाए? अब प्राण कैसे बचाए? रीछ अभी आएगा और हम दोनों को जिन्दा न छोड़ेगा। उनमें से एक मित्र बहुत चालाक था। तेजी से भाग कर पेड़ पर चढ़ गया। और दूसरा मित्र वही खड़ा हुआ रीछ को अपने पास आता हुआ देख रहा था फिर उसने अपनी बुद्धि से वह तेजी से बस वह सांस रोककर धरती पर लेट रहा। इस तरह जैसे मर गया हो।
इतने में रीछ उस सीधे-साधे मित्र के पास जा पहुँचा। वह थोड़ी देर तक उसके मुँह, कान आदि अंग सूंघता रहा फिर उसे मरा समझकर अपनी राह चला गया।
रीछ के जाते ही वह चालाक मित्र पेड़ से उतरा। अपने सीधे-साधे मित्र के पास आया और हँसते-हँसते बोला- यार! तुमने तो रीछ से भी मित्रता जोड़ ली, भला वह तुम्हारे कान में धीरे-धीरे क्या कह रहा था? सीधे-साधे मित्र ने कहा-अब वह न पूछो। रीछ
काम की बात कह गया है, बड़े काम की बात। चालाक मित्र फिर बोला-तब तो यार मुझे भी बताओ! देखो मैं तुम्हारा मित्र हूँ मुझसे छिपाओ मत।
सीधे-साधे मित्र ने उत्तर दिया-अच्छा, तो सुनो! रीछ मुझसे यह कह गया है कि जो मित्र अपने विपत्ति में पड़े हुए मित्र को छोड़कर चल देता है वह मित्र नहीं है। उस पर भरोसा करना भूल है। मित्र तो वह है जो विपत्ति में पड़े हुए अपने मित्र के काम आता है।
कम की बात कह गया है, बड़े काम की बात। चालाक मित्र फिर बोला-तब तो यार मुझे भी बताओ! देखो मैं तुम्हारा मित्र हूँ मुझसे छिपाओ मत।
सीधे-साधे मित्र ने उत्तर दिया-अच्छा, तो सुनो! रीछ मुझसे यह कह गया है कि जो मित्र अपने विपत्ति में पड़े हुए मित्र को छोड़कर चल देता है वह मित्र नहीं है। उस पर भरोसा करना भूल है। मित्र तो वह है जो विपत्ति में पड़े हुए अपने मित्र के काम आता है।
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