भावों का चमत्कार
भावों का चमत्कार
एक बार सम्राट श्रेणिक भगवान महावीर के दर्शन के लिए जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक मुनिराज को अत्यंत क्रोध की मुद्रा में एक पेड़ के नीचे ध्यान में बैठे हुए देखा। सम्राट श्रेणिक ने उनको वंदन किया और सीधे भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में गये और भगवान से मुनिराज के तीव्र क्रोध का कारण और इसका फल जानने की इच्छा रखी। भगवान ने कहा, "श्रेणिक! जिस समय तुम उधर से गुजर रहे थे, वे तीव्र क्रोध में मग्न थे। अगर थोड़ी देर ऐसे ही रहे तो सातवें नरक में जाएंगे। दरअसल बात यह है कि वे एक राजा थे और अपने बच्चे का अबोध अवस्था मे राजतिलक करके वह दीक्षित हो गए थे। उनके दीक्षित होने के बाद उनके मंत्रियों ने छल पूर्वक पूरा राज्य हथिया लिया और उनके बेटे और रानी को देश से निकाल दिया था।"
फिर जब राजा श्रेणिक भगवान का धर्मोपदेश सुनकर लौटे तो वहाँ का माजरा देखकर अचंभित हो गए। देखा - महाराज को तो केवलज्ञान हो गया और सब ही देवता उनकी पूजा कर रहे थे। राजा श्रेणिक को देखकर आश्चर्य हुआ कि इनको केवल ज्ञान कैसे हो गया? वो वापस भगवान के पास गए और उन्होंने पूरी बात जानने की चेष्टा भगवान के सामने रखी। भगवान ने बताया कि जिस समय तुम आ रहे थे उस समय महाराज के मन में बड़ा क्रोध था और अपने मंत्रियों को मारने का भाव था। जैसे ही एक हाथ तलवार और दूसरा हाथ मुकुट के स्थान पर गया तो तत्क्षण ध्यान आया कि अब वो राजा नहीं एक मुनिराज हैं। अपनी गलती का अहसास करके प्रायश्चित किया और आत्म- ध्यान में लीन होकर केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया।
यह है भाव का चमत्कार । बंधुओं! पहले प्रयास करो कि भाव बिगड़े नहीं और यदि कदाचित् भाव बिगड़ भी जाएं तो तुरंत के तुरंत उन्हें संभालो । ध्यान रखने की बात यह है कि जब भाव सुधरेंगे तभी भव सुधरेगा ।
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