वहम की बीमारी
वहम की बीमारी
एक व्यक्ति को भ्रम हो गया कि वह मनुष्य नहीं है बल्कि अनाज का दाना है। वह बाहर निकलता है तो पक्षियों को देखकर छिप जाता है कि कहीं वे उसे चुग न लें। चक्की के पास से गुजरता है तो उसका दिल धड़कने लगता है कि कहीं वह पिस न जाए, बारिश होती है तो उसे डर लगता है कि कहीं उसमें से अंकुर न हो और फूट न जाएं। आखिर उसे एक मनोरोग विशेषज्ञ के पास ले जाया गया। काफी देर तक संवाद करने के बाद विशेषज्ञ उसे यह यकीन दिलाने में सफल हो गया कि वह अनाज नहीं मनुष्य है । क्योंकि बोलना, चलना, सोचना ऐसे तमाम काम हैं, जो वह कर सकता है, लेकिन एक अनाज का दाना नहीं कर सकता । वह विशेषज्ञ का आभार प्रकट करके चला गया। दो ही मिनट बीते थे कि वह भागता हुआ आया और विशेषज्ञ की मेज के नीचे छिप गया । उसने पूछा कि क्या हुआ तो मरीज ने बताया कि बाहर एक मुर्गा है, जो उसकी ओर बढ़ रहा था । विशेषज्ञ ने उसे डांटा और बोला कि तुम्हें पता है कि तुम अनाज नहीं बल्कि एक इंसान हो। आपकी बात सही है साहब, वह हांफते हुए बोला, मुझे तो आपने समझा दिया, लेकिन मुर्गे को तो यह बात नहीं पता होगी न।
सार- वहम का कोई इलाज नहीं होता ।
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