पागल राजा

                       पागल राजा

राजा की सवारी श्मशान के पास से जा रही थी। तभी उन्होंने देखा एक भिखारी सा आदमी श्मशान के बाहर बैठा है। राजा ने पूछा- तुम नगर में ना जाकर यहां क्यों बैठे हो ? भिखारी बोला राजा ! नगर के सभी लोगों को एक दिन यही आना है, इसलिए मैं पहले से ही यहां आ गया हूं। राजा बोला- तू तो पागल है, जब तेरी बारी आएगी, लोग तुझे अपने आप ही यहां ले आएंगे। भिखारी बोला- तुमको भी यही आना है, एक न एक दिन । राजा बोला- तुम तो वास्तव में घोर पागल हो। ये मेरी मूल्यवान छड़ी है, इसमें हीरे, मोती, पन्ने आदि जड़े हुए हैं। इसे रख लो अपने पास और अगर किसी को देनी हो तो ऐसे आदमी को देना जो तुमसे भी ज्यादा पागल हो। कुछ वर्षों बाद राजा गम्भीर रूप से बीमार हो गया, उसके बचने की आशा नहीं रही। ये भिखारी राजा के पास मिलने पहुंचा बोला - बहुत बीमार हो राजन । राजा ने कराहते हुए कहा- हां, अब तो बचने की आशा भी नहीं, अब तो जाना ही होगा। भिखारी बोला- कहां जाना है ? राजा बोला- यह कैसे मालूम होगा? किसी को पता नहीं तू तो पागलों जैसी तू बात करता है । भिखारी बोला- कोई सामान तो भेज दिया होगा ? अपने मंत्री या सचिव को वहां भेज दिया होगा, प्रबंध के लिए? राजा बोला- तुम वही पागल के पागल हो। ये सब कुछ कैसे हो सकता है ? भिखारी बोला- वहां चावल, आटा, दाल आदि भेज देते। सवारी के लिए कोई मोटर, बग्गी, घोड़ा भेज देते। राजा ने चिल्लाकर कहा- अरे पागल ! मैं जहां जा रहा हूं वहां कुछ भी नहीं भेजा सकता। भिखारी बोला- तो राजन इस छड़ी को तुम संभालो, क्योंकि तुम सबसे ज्यादा पागल हो ! तुम्हें पता था कि ये सब तुम्हारे साथ नहीं जाएगा, तो भी तुम यह सब कुछ इक्कट्ठा क्यों करते रहे ? ये हाल राजा का ही नहीं अधिकांश लोगों का भी यही हाल है।

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