सच्ची सुंदरता

सच्ची सुंदरता
राजकुमार भद्रबाहु को अपने सौंदर्य पर बहुत गर्व था। वह खुद को दुनिया का सबसे सुंदर आदमी मानता था। एक बार वह अपने मित्र सुकेशी के साथ कहीं घूमने जा रहा था। रास्ते में श्मशान आ गया। वहां जब भद्रबाहु ने आग की लपटें देखीं तो चौंक गया। उसने सुकेशी से पूछा, 'यहां क्या हो रहा है?" सुकेशी ने कहा, 'युवराज, मृत व्यक्ति को जलाया जा रहा है।' इस पर भद्रबाहु ने कहा, 'जरूर वह बहुत ही कुरूप रहा होगा । सुकेशी बोला, 'नहीं, वह बहुत ही सुंदर था । इस पर भद्रबाहु ने आश्चर्य से कहा, 'तो फिर उसे जलाया क्यों जा रहा है ?' सुकेशी ने जवाब दिया, 'मृत व्यक्ति की देह को एक दिन जलना ही होता है। चाहे वह कितना ही सुंदर क्यों गया। न हो। मरने के बाद शरीर नष्ट

भद्रबाहु को काफी धक्का लगा। उसका सारा अहंकार चूर-चूर हो गया। उसके बाद से वह हरदम उदास रहने लगा। इससे उसके परिवार के लोग और मित्र चिंतित हो गए। एक दिन भद्रबाहु को एक महात्मा के पास ले जाया गया। सारी स्थिति जानकर महात्मा ने उसे समझाया, 'कुमार, तुम भारी भूल कर रहे हो । शरीर थोड़े सुंदर होता है। सुंदर तो होता है, उसमें रहने वाला हमारा मन । हमारे विचार और कर्म सुंदर होते हैं । तुम शरीर को इतना महत्त्व न दो । इसे एक उपकरण या माध्यम भर समझो। अपने विचार और कर्म को सुंदर बनाने का प्रयत्न करो। तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। भद्रबाहु को बात समझ में आ गई। उस दिन से वह बदल गया।

सीख - शारीरिक सुंदरता नाशवान होने लगता है। इसलिए उसे है । मन, कर्म और विचारों से सुंदर बनें।

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