आंसू और हंसी
आंसू और हंसी
नदी के तट पर संध्या के समय एक लकड़बग्घा एक घड़ियाल से मिला। उन्होंने रुककर एक दूसरे का अभिवादन किया । लकड़बग्घे ने कहा- आपके दिन कैसे चल रहे हैं जी ? घड़ियाल ने जवाब दिया- मेरे दिन तो बुरे जा रहे हैं। जब कभी मैं अपने दुख-दर्द मैं रोता हूं, तब प्राणी हमेशा यह कहते हैं कि यह तो घड़ियाली आंसू हैं। इससे मैं बेहद आहत हूं। तब लकड़बग्घे ने कहा- आप अपने दुख-दर्द की बात करते हैं लेकिन एक पल मेरे बारे में भी सोचें। मैं संसार के सौंदर्य, उसके आश्चर्य और उसके चमत्कारों को देखता हूं और मारे खुशी के हंस देता हूं। जैसे दिन हंसता है। लेकिन जंगल के लोग कहते हैं- यह तो बस एक लकड़बग्घे की हंसी है। खलील जिब्रान इस कथा के माध्यम से दुनिया की दृष्टि को रेखांकित कर रहे हैं जो हर गतिविधि की अपने ढंग से व्याख्या करती है। बोध कथा बाज और लवा बाज और लवा पक्षी एक ऊंची पहाड़ी की चट्टान पर मिले। लवा ने कहा- नमस्ते जी। बाज ने तिरस्कार से देखा और धीमे से कहा- नमस्ते । लवा पक्षी ने कहा- उम्मीद है आपकी तरफ सब ठीक-ठाक है जी । बाज ने कहा- हां हमारी तरफ सब ठीक है लेकिन तुम्हें पता नहीं कि हम परिंदों के राजा हैं और जब तक हम खुद ना बोलें, तुम्हें हमसे नहीं बोलना चाहिए। लवा ने कहा- लेकिन हम एक ही परिवार के हैं। बाज ने उस पर तिरस्कार की दृष्टि डाली और कहा - किसने कह दिया कि तुम और मैं एक ही परिवार के हैं। लवा ने कहा- लेकिन मैं आपको याद दिला दूं कि मैं आपके बराबर ऊंचा उड़ सकता हूं। मैं गा सकता हूं और इस धरती के दूसरे प्राणियों को आनंद दे सकता हूं। आप न तो सुख देते हैं न आनंद। बाज क्रोधित हो गया और उसने कहा- सुख और आनंद, तुम पिद्दी से धृष्ट प्राणी! मैं तुम्हे अपनी चोंच के एक ही वार से खत्म कर सकता हूं। तुम तो मेरे पांव के बराबर हो। तब लवा उड़कर बाज की पीठ पर जा बैठा और उसके परों को नोंचने लगा। बाज नाराज हो गया। उसने इतनी तेज और इतनी ऊंची उड़ान भरी ताकि उस नन्हे पक्षी से मुक्ति मिल जाए। किंतु वह सफल नहीं हुआ। हारकर वह इस ऊंची पहाड़ी की उसी चट्टान पर उतर गया। वह पहले से अधिक झुंझलाया हुआ था । वह नन्हा पक्षी अब भी उसकी पीठ पर था। एक छोटा कछुआ यह दृश्य देखकर हंस पड़ा। बाज ने तिरस्कार से कहा-सुस्त, रेंगने वाले जीव, धरती का साथ न छोड़ने वाले, तुम किस बात पर हंस रहे हो । कछुए ने कहा- अरे मैं देख रहा हूं कि तुम घोड़ा बने हुए हो और एक छोटा पक्षी तुम पर सवार है। तुमसे बेहतर है। बाज ने उससे कहा- 'जाओ जाकर अपना काम करो। यह मेरे भाई लवा का और मेरा पारिवारिक मामला है।' (खलील जिब्रान )
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