संगत का असर
संगत का असर
प्राचीन काल में एक संत दूसरे गांव जाने के क्रम में अपने एक शिष्य के साथ एक गांव में कुछ दिनों को लिए रुके। गांव के लोग संत के पास अपनी समस्याएं लेकर पहुंचने लगे। संत बहुत विद्वान थे। वे अपनी बुद्धि से सभी परेशानियों को दूर करने रास्ता बता देते थे। कुछ ही दिनों संत की प्रसिद्धि पूरे क्षेत्र में फैल गयी। संत रोज प्रवचन भी देते थे। उनके उपदेश सुनने के लिए गांव में दूर-दूर से लोग आने लगे। संत की बढ़ती प्रसिद्धि को देखकर गांव के एक पुजारी को जलन होने लगी। वह सोचने लगा कि इस तरह तो उसके भक्त भी संत के पास पहुंचने लगेंगे। पुजारी जलन की वजह से संत को शत्रु मानने लगा था। पुजारी ने संत की छवि खराब करना शुरू कर दिया। वह गांव के लोगों को कहने लगा कि ये संत पाखंडी है और लोगों मूर्ख बना रहा है। पुजारी के कुछ साथी भी इस काम में उसका साथ दे रहे थे। एक दिन संत के शिष्य ने गांव में अपने गुरु की बुराई सुनी तो वह क्रोधित हो गया। शिष्य तुरंत ही गुरु के पास पहुंचा और गांव में हो रही बुराई के बारे में बताया। संत ने शिष्य की बातें सुनी और कहा कि हमें इन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अगर हम उस पंडित से वाद-विवाद करेंगे तो भी ये बातें चलती रहेंगी। जिस तरह हाथी पर कुत्ते भौंकते हैं, लेकिन हाथी अपनी मस्त चाल में चलते रहता है। ठीक उसी तरह हमें भी ऐसी बुराइयों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अपने काम में मन लगाना चाहिए।
संदेश : यह जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति आपके पक्ष में हो। समाज में कुछ लोग हमारे पक्ष में होते हैं तो कुछ विपक्ष में भी होते हैं। हमसे मतभेद रखने वाले लोग दूसरों के सामने हमारी बुराई करते हैं और वे हमारी परेशानियां बढ़ाने रहते हैं। ऐसी स्थिति में हमें निदाओं से विचलित हुए बिना अपना काम करते रहना चाहिए।
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