प्राणी उपकार से ही बड़प्पन पाता है



प्राणी उपकार से ही बड़प्पन पाता है
धूप जोर से पड़ रही थी। अपने शिकार की खोज में घूमते-घूमते थक गया और धूप से घबरा उठा। बस वह एक पेड़ की छाया में जा लेटा और लेटते ही वह गहरी नींद में मग्न हो गया।
        पेड़ की जड़ में एक चूहा बिल बनाकर रहता था। । वह अचानक बिल से बाहर निकला तो सिंह को गहरी नींद में सोया देखकर प्रसन्न हो उठा। बस पहुँचा उछलकर सिंह के पास और लगा उसके शरीर पर धमा चौकड़ी मचाने, चूहे की इस धमाचौकड़ी से सिंह की नींद टूट गयी। उसने क्रोध में आकर अपना पंजा फटकारा और चूहे को दबोच लिया।

अब तो चूहा घबराया और आँसू बहाते-बहाते सिंह से विनती करने लगा-सरकार! आप जंगल के राजा हैं, पल में बड़े-बड़े हाथियों को पछाड़ देते हैं। भला मैं जरा-सा चूहा आपके सामने किस गिनती में हूँ और मुझे मार डालना आपके लिए कौन-सा बड़ा काम है। इससे आपकी बड़ाई नहीं होगी। लोग यही कहेंगे कि सिंह ने चूहे को मार डाला तो बड़ी बहादुरी दिखाई। इसलिए दया कीजिए, मुझे छोड़ दीजिए, मैं आपका उपकार कभी नहीं भूलूँगा और बन सका तो इस उपकार का बदला भी चुका दूँगा।

सिंह चूहे की यह विनती सुनी तो उसका क्रोध हवा हो गया। यह हँसते-हँसते बोला- अच्छा, मैंने तुझे छोड़ दिया। जा भी क्या कहेगा। तू सिंह के पंजे से छुटकारा पाते ही चूहा झट से अपने बिल में जा घुसा।

कुछ दिन बाद सिंह जगल में शिकार की खोज करते-करते अचानक एक शिकारी के जाल में जा फंसा। वह छूटने के लिए ज्यों-ज्यों उछल-कूद करने लगा। त्यों-त्यों वह जाल में मजबूती से जकड़ता गया। अब तो बेचारा बहुत घबराया और अपने छुटकारे का कोई उपाय न देखकर लगा जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने।

सिंह के चीखने- चीखने की आवाज बिल में पहुँची तो उसे सुनते ही चूहा चौंक उठा और बोला-अरे!
यह तो उसी सिंह की आवाज है जिसने उस दिन मुझसे मारते-मारते छोड़ दिया था। मालूम होता। है-बेचारा किसी मुसीबत में फंस गया है। यदि यह बात न होती, तो भला वह क्यों इस तरह चीखता-चिल्लाता। चलूँ तो सही, उसे मुसीबत से बचाने के लिए कुछ-न-कुछ करता हूँ या नहीं। भगवान करे, मैं उसे मुसीबत से बचा लूँ तो उसके उपकार का बदला चुक जाएगा।

बस, चूहा झटपट बिल से बाहर निकला और दौड़ा-दौड़ा जंगल में जा पहुँचा। देखता क्या है कि जाल में सिंह मजबूती से जकड़ा पड़ा है और उसकी चिल्लाहट से सारा जंगल गूंज रहा है। चूहे ने एक छलांग में सिंह के सामने जाकर कहा-मुझे पहचानते हैं सरकार, उस दिन आपने मेरी विनती पर मुझे मारते-मारते छोड़ दिया था। मैं आपका वह उपकार भुला नहीं हूँ और उसका जाल काटता हूँ और आपको इस मुसीबत से छुटकारा दिलाता हूँ। मेरे रहते हुए आपको घबड़ाने की जरूरत नहीं है।

यह कहकर चूहे ने अपने पैने दांतों से जाल कुतर डाला, सिंह इस मुसीबत से छुटकारा पाते ही वह उठकर खड़ा हो गया और हँसते-हँसते बोला- चूहे भाई वाह ! तुम हो तो जरा-से परन्तु उपकार जानते हो। प्राणी उपकार से ही बड़प्पन पाता है। 
उसके बाद वह शिकार की खोज करने के लिए चला गया।अच्छा धन्यवाद!

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