सेठ की खांसी
सेठ की खांसी
एक थे सेठजी। खांसी लग गईं उन्हें, परन्तु उन्हें आदत थी खट्टा दही, खट्टी लस्सी, खट्टा अचार और इसी प्रकार की दूसरी वस्तुएं खाने की। जिस वैध जी के पास जाते, वह कहता ये वस्तुएं खाना छोड़ दो, उसके बाद ही चिकित्सा हो सकती है। अंत में एक वैद्य जी मिले। उन्होंने कहा- मैं चिकित्सा करता हूँ आप जो चाहे खाते रहिए । वैद्य जी ने औषधि दी, ये सेठ जी खट्टी वस्तुएं खाते रहे। कुछ दिन के पश्चात मिले तो वैद्य जी से बोले- वैद्य जी ! खांसी बढ़ी तो नहीं परन्तु कम भी नहीं हुई। वैद्य जी ने कहा, आप मेरी दवाई खाते रहिए, खट्टी चीजें भी खाते रहिए। इससे तीन लाभ होंगे। सेठजी ने पूछा कौन-कौन से? वैद्य जी बोले- पहला यह कि घर में चोरी नहीं होगी, दूसरा यह कि कुत्ता कभी नहीं काटेगा, तीसरा यह कि बुढ़ापा कभी नहीं आएगा। सेठजी ने पूछा कैसे ? वैद्य जी ने उत्तर दिया- खांसी हो और खट्टी वस्तुएं खाते रहिए तो खांसी कभी अच्छी नहीं होगी। दिन में खांसोगे और रात में भी, तब चोर कैसे आएगा? और खांस खांसकर हो जाओगे दुर्बल। लाठी के बैगर उठा नही जाएगा, चला नहीं जाएगा, हर समय हाथ में लाठी रहेगी तो कुत्ता कैसे काटेगा? और दुर्बलता के बैगर मर जाओगे यौवन में ही तब बुढ़ापा आएगा कैसे ? सेठजी को तो बात समझ में आ गईं। परन्तु प्रायः हमें समझ नहीं आती । इस चटोरी जीभ के लिए हम पता नहीं क्या-क्या करते है ? किस प्रकार नाश करते हैं और सबसे बढ़कर मानवता खो बैठते है। इसका मतलब ये नहीं कि खाना पीना बंद करके लगातार व्रत रखना आरम्भ कर दें। वैसे कभी- कभी व्रत रखें तो अच्छा है। इससे स्वास्थ्य ठीक रहता है और मन भी। वैसे संयमित खाने, ऋतु अनुकूल खाने और शरीर माफिक खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। आयुर्वेद तो कहता है भूख से आधा खाओ, पेट का एक चौथाई भाग पानी के लिए और एक चौथाई भाग हवा के लिए खाली रखो।
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