दास्तान-ए- शेखचिल्ली

दास्तान-ए- शेखचिल्ली

खुरपे का बुखार 

एक बार माता-पिता ने शेख चिल्ली को घास खोदने के लिए जंगल में भेज दिया उन दिनों चिल्ली बारह वर्ष के थे। दोपहर तक उन्होंने एक गट्ठर घास खोद ली और गट्ठर उठाकर घर चले आए। घरवाले बड़े खुश हुए। क्योंकि पहली बार चिल्ली ने कोई काम किया था।

परन्तु जब कई घंटे बीत गए तो चिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गए थे, वह तो जंगल में ही रह गया है। अतः शेख चिल्ली जंगल की तरफ दौड़े और जाकर देखा कि तेज धूप में पड़ा पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे-सा तपता खुरपा मूठ से पकड़ा। मूठ भी गर्म हो गई थी। अब तो चिल्ली घबराए ।

" अरे खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है।' मन ही मन चिल्ली चिन्तित हुए और हकीमजी के पास जाकर बोले-"हकीम साहब! हमारे खुरपे को बुखार हो गया है, जरा दवाई दीजिए न। "

हकीम समझ गया कि चिल्ली शरारत कर रहा है। उसने भी वैसा ही उत्तर दिया- " अरे हां, वाकई इसे तो बुखार है। जाओ, जल्दी से इसे रस्सी से बांधकर कुएं में डुबकी लगवा दो। तब भी बुखार न उतरे तो मेरे पास लाना।"

चिल्ली चले गए। रस्सी से खुरपा बांधा और कुएं में लटकाकर खूब गोते लगवाए। थोड़ी देर बाद बाहर खींचा तो देखा कि खुरपा ठण्डा हो गया था। चिल्ली ने मन ही मन हकीमजी को धन्यवाद दिया।

संयोगवश एक दिन हकीम साहब की दूर की रिश्तेदार और उन्हीं से अक्सर दवाई लेने वाली एक बुढ़िया को तेज बुखार हो गया। वह चिल्ली के पड़ोस में ही रहती थी। चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया को लोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं।

चिल्ली ने दिमाग लगाया और सहानुभूति के कारण हकीम साहब का बताया हुआ नुस्खा बुढ़िया के परिवार वालों को बताते हुए कहा- "हकीम साहब जो कुछ बताएंगे, मैं तुम्हें यहीं बता देता हूं। दादीजान को तेज बुखार है। तो फिर उन्हे रस्सी से बांध कर कुएं में डाल दो बुखार सी तप रही है। इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इसे किसी कुएं या तालाब •में खूब अच्छी तरह से डुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए समाप्त हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहब ने ही बताई थी। "

लोगों ने बारह-तेरह वर्षीय चिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पटरे पर बैठाकर रस्सियों से बांधकर कुएं में लटका दिया। कुएं में बुढ़िया को खूब डुबकी लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तो वह ठण्डी हो गई थी। उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे। बुढ़िया के परिजन चिल्ली पर बिगड़ उठे । गुस्से में उन्होंने कहा - "तुमने दादी को मरवा दिया।"

शेख चिल्ली की सलाह पर बुढ़िया को रस्सी से बांधकर कुएं में उतारते लोग। 

चिल्ली बोले- "मियां! मैंने तो बुखार की गारन्टी ली थी, अच्छी तरह देख लो कि बुखार उतर गया या नहीं। हकीमजी की तरकीब गलत नहीं है। यह उन्हीं की बताई हुई तरकीब है, जाकर पूछ लो । तरकीब गलत होती तो दादीजान का बुखार न उतरता । "

लोग हकीम साहब के पास गए। हकीम साहब से पूछा गया तो उन्होंने चिल्ली के खुरपे के बुखार वाली बात बताते हुए कहा कि उन्होंने गर्म खुरपे को ठंडा करने के लिए इस शरारती लड़के को तरकीब बताई थी । बुढ़िया को बुखार था। उसे पानी में नहीं डुबोना चाहिए था । वह इन्सान थी, खुरपा नहीं थी । इस कांड के कारण चिल्ली पर घरवालों की बहुत डांट पड़ी।

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